Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 85
________________ आई। एक बेहूदा गाना चल रहा था। महानुभाव ने कहा कि बच्चों ने चालू कर दिया होगा। मैंने कहा-'क्या आप ऐसी कैसेट चलाते हैं ? संगीत सुनना गलत नहीं है, मगर वह संगीत सुना जाए जो जीवन को सुख-सुकून दे । यह संगीत आपके बच्चों को कौन-से संस्कार दे रहा है ? ऐसा संगीत दूषित और प्रदूषित सोच देने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता । फिर चाहे आप इन्हें मेयो कॉलेज में पढ़ाएँ या दून के विद्यालय में, इनका नजरिया सदा विकृत और दूषित ही बना रहेगा। मेरी बात सुनकर उन महोदय ने कहा—'साहिब, यह कैसेट मेरा नहीं, ड्राइवर का है ।' मैंने कहा—'ज़रा तुम यह सोचो कि तुम्हारे ड्राइवर और तुम्हारे स्तर में फर्क ही क्या रहा? क्या तुम दोनों का स्तर समान समझते हो? ड्राइवर ने वह कैसेट चलाई, लेकिन वह कैसेट ड्राइवर की कार में नहीं, तुम्हारी कार में चल रही है, संस्कार तुम्हारे घर के दूषित हो रहे हैं ।' मेरी बात सुनकर उसका लज्जित होना स्वाभाविक था । सही है, शिक्षा तो वह हो जिससे हमें जीने की कला आत्मसात् हो, जीने की शैली मिले और हमारे जीवन का स्तर ऊँचा उठे। सोच हो सत्यम् शिवम् सुन्दरम् व्यक्ति की जैसी सोच और उसके विचार होंगे, उसका व्यक्तित्व वैसा ही निर्मित होगा । अगर आप अपनी ओर से सत्य के बारे में सोचेंगे तो आपके जीवन में सत्य उतरेगा, अगर आप शिवम् के बारे में सोचेंगे तो आपके जीवन में शिवम् घटित होगा और यदि सौंदर्य के बारे में चिंतन करेंगे तो हमारे जीवन में सौंदर्य अवतरित होगा । सत्य के बारे में सोचने वाले व्यक्ति के जीवन में असत्य रह ही नहीं जाता और शिवम् के बारे में चिंतन करने वाले व्यक्ति के द्वारा खून की होली नहीं खेली जा सकती । जो व्यक्ति शिवम् और सौंदर्य के बारे में चिंतन करेगा, वह व्यक्ति कभी भी किसी पर गलत नजर नहीं डालेगा, क्योंकि वह जानता है कि गलत नजर उठाना भी अपने आप में एक कुकृत्य है। सौंदर्य के नाम पर हमने केवल लिपस्टिक और पाउडर पर ही ध्यान दिया है। हमने कभी भीतर के सौंदर्य पर ध्यान ही नहीं दिया । व्यक्ति अगर भीतर के सौंदर्य के बारे में सोचता है, उस पर विचार करता है तो उसका जीवन अपने आप सुंदर होता चला जाएगा। क्या आपने गाँधी को पारंपरिक सौंदर्य के पैमाने पर परख कर देखा है ? गाँधी उस दृष्टि से बिलकुल सुंदर नहीं थे, फिर भी उस आदमी स्वस्थ सोच के स्वामी बनें ७८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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