Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 71
________________ बन जाए । इसी तरह दान देना हो तो इस हाथ से दो और उस हाथ को पता भी न चले । किसी की सेवा करो तो इस हाथ से करो, उस हाथ को पता न चले। अभी दो दिन पहले की बात है। निराश्रित बच्चों के लिए विद्यालय चलाने वाले एक सज्जन आए और कहा कि पन्द्रह अगस्त का दिन आ रहा है । हम चाहते हैं कि उस दिन यहाँ वालों की ओर से सभी बच्चों के लिए 'यूनीफॉर्म' की व्यवस्था हो, इसलिए चंदा-चिट्ठा लिखवा दिया जाए । मैंने कहा-इसके लिए चंदे-चिट्टे की क्या ज़रूरत? आप जाइये, व्यवस्था हो जायेगी और व्यवस्था करवा दी गई। ऐसा पुण्य करो कि किसी को पता भी न चले, तो उसमें तो मज़ा है । सहजता से लें हर टिप्पणी आदमी भयभीत है निंदा के भय से, आलोचना-टिप्पणी के भय से। लोक-लाज व्यक्ति को हर गलत कार्य करने से रोकता है। एक बहुत प्यारी-सी घटना कहना चाहूँगा, एक ऐसी घटना जिसे सारे संसार को सुनाया जाना चाहिए। वह घटना है संत हाकुइन के जीवन की । कहते हैं कि संत हाकुइन अपनी छोटी-सी झोंपड़ी बनाकर किसी गाँव में रहा करते थे। उनके पड़ौस में और भी मकान थे। एक बार एक कुँआरी युवती गर्भवती हो गई। उस युवती के माता-पिता ने उसे बहुत लताड़ा, मारा-पीटा और पूछा कि तेरी कोख में किसका पाप है ? युवती से और कोई नाम लेते न सूझा । उसने झट से संत हाकुइन का नाम ले लिया। युवती के माता-पिता और परिजन संत हाकुइन के पास पहुँचे और जाकर अपनी बेटी की सारी बात कही। तब संत हाकुइन ने जो शब्द कहे, वे ध्यान देने योग्य हैं । संत हाकुइन ने कहा—'ओह, तो ऐसी बात है, इट्स देट सो !' जब नौ माह पूरे हुए तो प्रसव हुआ। वह संतान नियम के अनुसार संत हाकुइन को लाकर सौंप दी गई 'तुम्हारी संतान है, तुम्ही संभालो।' संत ने बड़े प्रेम-भाव के साथ उसे स्वीकार कर लिया। बच्चे के लालन-पालन के लिए दूध आदि की जो व्यवस्था होनी चाहिए थी, वह व्यवस्था संत जुटा लेते । बच्चे का पालन-पोषण होने लगा। बच्चा चार-पाँच वर्ष का हो गया । एक दिन युवती की तबियत बिगड़ने लगी, वह मरणासन्न स्थिति में पहँच गई। उसने अपने घर के सारे सदस्यों को बुलाया और कहा—'मैं निरन्तर इसलिए रुग्ण होती जा रही हूँ कि मैंने एक पवित्र आत्मा पर झूठा आरोप लगाया है ।' घर वाले उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित भय का भूत भगाएँ ६४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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