Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 29
________________ हुआ वक्त आदमी की जिंदगी में कभी लौटकर नहीं आता । बीत गई सो बात गई, तकदीर का शिकवा कौन करे, जो तीर कमां से निकल चुका, उस तीर का पीछा कौन करे ? जब तक तीर तुम्हारी कमान में है तब तक तुम उसके बारे में सोचो, विचारो, शायद बात बन जाए, लेकिन जो तीर कमान से छूट गया है, जो बात जबान से निकल गई है, जो घटना घट चुकी है, उसके बारे में क्या सोचना ! पुराना हो जाने पर तो हम दीवार से कलैण्डर तक उतार देते हैं, फिर किसी बात का दामन क्यों थामे बैठे हैं ! पर ऐसा होता है । आदमी मिलता है किसी से, कोई महानुभाव जब घर पर मिलने के लिए आता है, आधे घण्टा तक आपस में बतियाते हैं और जब वह चला जाता है तो हम बैठे-बैठे उसके बारे में सोचते हैं। आदमी गया, बात खत्म हो गई । तुम उस आदमी के जाने के बाद उसके बारे में बैठे-बैठे सोचते रहते हो, यही तो चिन्ता है । तुम तो आईना बनो, एक दर्पण बनो कि कोई आया और तुम बोल उठे । वह हटा, आईना साफ । आईना पहले भी साफ था, बाद में भी साफ रहा । I मस्त रहें हर हाल में मेरे संदेशों का सार-सूत्र है तो वह एक ही सार-सूत्र है - मस्त रहो, हर हाल में मस्त रहो । हर हाल में मस्ती और खुशमिजाजी आत्मा का सबसे बेहतरीन स्वास्थ्य है । रूखी-सूखी मिल गई तो भी मस्त, चिकनी-चुपड़ी मिल गई तो भी मस्त । मैं कहाँ दुनिया की सोचूँ, दुनिया की वह सोचेगा जो दुनिया को बनाता है । मैं तो अपने बारे में सोचूँ और अपने में मस्त रहूँ । तब तुम देखोगे कि तुम कितने शांत और प्रसन्न चित्त हो । कोई मेरे चलने को देखे तो असमंजस में पड़ जाएगा, क्योंकि मेरा हर कदम बहुत प्रफुल्लित कदम होता है । मेरा हाथ का उठाना भी मुझे आनंद दे रहा है । मेरा बतियाना भी मुझे सुकून देता है । मैं आप लोगों से इसलिए बोल रहा हूँ, क्योंकि मुझे बोलना भी सुख देता है । मेरे लिए वाणी का उच्चारण करना भी आप सब लोगों के जीवन से प्यार करने जैसा है । चिंता नहीं, जो होता है संयोग है । आने वाले कल के बारे में सोच-सोचकर तुम अपनी काया को ही दुबली करोगे । निश्चित रहो । अरे जो आने वाला कल देगा, वह कल की व्यवस्था भी देगा । 1 कोई अगर मुझसे पूछे कि मेरे जीवन में संतोष और शांति कैसे आई, जबकि मन के बोझ उतारें Jain Education International For Personal & Private Use Only २२ www.jainelibrary.org

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