Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 34
________________ आदमी की लालसा या लालच तो देखो। आज इस कलियुग में लोग आठ-नौ बजे तक तो बिस्तरों में दुबके रहते हैं कुंभकरण की तरह, लेकिन ये महानुभाव तो सुबह छह बजे दुकान खोल देते हैं। पूछा, 'दुकान रात को कितने बजे बंद होती है?' जवाब मिला, रात को बारह बजे।' कार्यों और कर्त्तव्यों का निर्वाह होना चाहिए मगर अमर्यादित लालसाएँ और कामनाएँ मनुष्य को ऊँचा बनाती हैं । जीवन का हर कार्य और कर्त्तव्य मनुष्य के लिए देवदूत की तरह होता है, लेकिन जिन भौतिक सुखों के पीछे हम अन्धे होकर दौड़ते हैं, वे हमारी जिन्दगी के चापलूस शत्रु हुआ करते हैं, जो आदमी के खून को चूसते रहते हैं । पैसे कमाने के चक्कर में आदमी भूल जाता है कि उसके लिए समाज भी कुछ है, परिवार भी कुछ है, बूढ़े-बुजुर्ग भी कुछ हैं । उसे याद नहीं रहता कि और भी लोग हैं जिनके बीच उठना-बैठना चाहिए और अपने प्यार को, अपने स्नेह को बाँटना चाहिए। कमाओ, जरूर कमाना चाहिए, किन्तु कमाने की एक सीमा हो । बच्चे चाहते हैं कि उनके पिता उनको प्यार दें, उन्हें गले लगाएँ, उनको पढ़ने और आगे बढ़ने के सभी अवसर मिलें । बच्चों के प्रति अपने दायित्वों और कर्त्तव्यों की आप उपेक्षा नहीं कर सकते । आप अपने कर्तव्यों को जरूर निभाएँ, मगर व्यर्थ की लालसाओं में न उलझें । जिन्दगी को घर से घाट और घाट के बीच ही पूरा न कर डालें । कर्त्तव्य के और भी क्षेत्र हैं । काम करने को और भी हैं । जीवन को उत्सव बनाएँ, अमृत वरदान बनाएँ। हमारे सौ-सौ जन्मों के पुण्यों से जीवन का यह स्वरूप उभरा है। अपने जीवन को हम जितना अधिक वरदान बनाकर, प्रकृति की सौगात बनाकर जिएँगे, यह जीवन हमें उतना ही सुख और आनंद देगा। मैंने जाना है कि जीवन कितना सुखकर होता है । किस तरह से यह स्वर्ग के गीत रचता है । मेरे लिए यह जीवन केवल बाँस की पोंगरी नहीं, एक सुरीली बाँसुरी है, जिसको मैं जब-तब बड़े प्रफुल्लित भाव से सुना करता हूँ, गुनगुनाया कराता हूँ। आप भी इस बाँसुरी को साधना सीखें, जीवन को बोझ न मानें । मस्त रहें, मस्त, हर हाल में मस्त । ००० - लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ २७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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