Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 53
________________ सहानुभूति हो, सहिष्णुता भी हमारे प्रति कौन-कैसा व्यवहार करता है, इस बात को कभी मूल्य मत दो । मूल्य सदा इस बात को दिया जाना चाहिए कि हम अपनी ओर से औरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं ? कौन हमें गालियाँ निकालता है, मतलब इसका नहीं है, वरन् मतलब इस बात का है कि हम अपनी ओर से गालियाँ निकालते हैं या गीत गुनगुनाते हैं । महत्त्व हमारा अपना है । कुछ लोगों को देखकर आश्चर्य होता है कि अमुक व्यक्ति उनके सामने आया, उसने सामने वाले की खूब निन्दा की, खूब बदनामी की, मगर वह उसके साथ उसी प्रेम, उसी सम्मान - भावना से पेश आ रहा है । यही तो उस व्यक्ति की सहिष्णुता है, इसी में उसकी सामायिक-भावना है कि जब कोई कैसा भी व्यवहार करे तो व्यक्ति सहनशील बना रहे, प्रतिक्रियाओं के द्वन्द्व से मुक्त रहे । घर क्यों टूटते हैं ? एक माँ-बाप का खून आखिर क्यों बँट जाता है ? एक ही धर्म के अनुयायियों के बीच दरारें क्यों हैं ? इन समस्याओं की जड़ प्रतिक्रिया है। तुम्हारे भीतर मधुरता और सहनशीलता नहीं है, जिसके कारण समाज आपस टूट जाता है, लोग आपस में बँट जाते हैं । कोई अगर पूछे कि घर और परिवार का पुण्य क्या है, तो मैं कहूँगा कि एक माँ-बाप के अगर पाँच संतानें हैं और वे सभी एक साथ, एक ही छत के नीचे बैठकर खाना खाते हैं । इससे बढ़कर परिवार के लिए और पुण्य क्या हो सकता है ? जिस परिवार के चार बेटे अलग-अलग घर बसा लें, तो माँ-बाप के लिए इससे बढ़कर त्रासदी और क्या हो सकती है ? यह धर्म-संघ का पुण्य होता है कि जहाँ वह एकछत्र, एक मंच पर खड़ा होता है । यह धर्म-संघ के लिए पापोदय है कि जहाँ संघ एक तीर्थंकर - एक ईश्वर- एक धर्म का अनुयायी होने के बावजूद अपने आपको खेमों में बाँट लेता है। नतीजतन एक धर्म का वही हश्र होता है, जैसे किसी मानचित्र के चार टुकड़े कर दिये जाएँ और उन्हें चारों दिशाओं में फेंक दिये जाएँ । तोड़े नहीं, जोड़ें रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय । तोड़े से फिर ना जुड़े, जुड़े तो गाँठ पड़ जाय ॥ प्रतिक्रियाओं से परहेज रखें Jain Education International For Personal & Private Use Only ४६ www.jainelibrary.org

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