Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 57
________________ तरफ ध्यान दोगे तो तुम गये गुज़रे आदमी में भी गुण खोज ही निकालोगे, उनका भी उपयोग कर ही लोगे । है कुदरत हर इंसान में कुछ खास कमियाँ तो कुछ खास गुण देकर भेजती । गुण इसलिए कि उस गुण के बलबूते पर आदमी अपना जीवन जी सके और कमियाँ इसलिए कि व्यक्ति अपने पुरुषार्थ के द्वारा उन कमियों को जीत सके । अपनी कमियों को हमें जीतना होला है और अपनी खासियत को हमें जीना होता है । कभी भी किसी की निन्दा और आलोचना न करें। अपने मुँह से किसी भी तरह का कोई शब्द निकले तो पहले सोचें कि मैं कहूँ या न कहूँ । कहने के बाद केवल पछतावे के अलावा कुछ नहीं होता । वाणी का उपयोग इस तरह करो कि तुम्हारी वाणी औरों को दिया जाने वाला फूलों का गुलदस्ता बन जाए । जन्मदिन तो कभी-कभी आता है और तभी तुम किसी को फूलों का गुलदस्ता दे सकते हो, पर अपनी मधुर और सौम्य वाणी का गुलदस्ता रोज़ ही हर किसी को दे सकते हो । कभी भी किसी की आलोचना मत करो। माना कि किसी व्यक्ति के जीवन में कमियाँ होंगी, कुछ खामियाँ होंगी, पर अगर हमने उसकी खामियों को गिनना - गिनाना शुरू कर दिया, तो उसके जीवन का कचरा हमारे जीवन में आते देर नहीं लगेगी । जो व्यक्ति किसी की निंदा नहीं करता, उसे किसी तीर्थ की जरूरत नहीं रहती । वह घर बैठे गंगा स्नान कर लेता है। उसके लिए कठौती में ही गंगा है, क्योंकि मन निर्मल है, मन चंगा है । हम स्वयं तो किसी की निन्दा न ही करें, पर अगर कोई और व्यक्ति हमारी आलोचना करे, तो विचलित न हों । यह पड़ताल करें कि जो कहा जा रहा है, क्या उसमें कोई सच्चाई भी है । अगर सच है, तो स्वयं को सुधारें । अगर गलत है, तो चिन्ता किस बात की ! साँच को कैसा आँच ! भला, जब हम अपनी झूठी तारीफ भी प्रेम से सुन सकते हैं, तो अपनी सच्ची आलोचना को सुनने से क्यों कतराना ! शांति से आलोचनाओं का भी सामना करना आना चाहिए । बिन माँगे सलाह कैसी ! ध्यान रखें, कभी भी किसी को बिन माँगे सलाह न दें। सीख उसी को दी जाए, जो सीख का सम्मान करता हो । कहा भी गया है कि बंदर को कभी सीख न प्रतिक्रियाओं से परहेज रखें Jain Education International For Personal & Private Use Only ५० www.jainelibrary.org

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