________________
निरपेक्ष रहें परिस्थितियों से
छोटों के प्रति दया और करुणा; बड़ों के प्रति चित्त में समता और सम्मान–यही है सदाबहार शान्ति और सौम्यता का मंत्र । व्यक्ति का सकारात्मक रूप यही है कि व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में सदा शांत रहे, सौम्य रहे, प्रसन्न रहे, वह हर हाल में मस्त बना हुआ रहे । जो व्यक्ति अपने जीवन में प्रतिक्रियाओं से परहेज रखता है, वह व्यक्ति चौबीसों घंटे सामायिक में है, समत्व में है । तब उसके चित्त में सदाबहार शांति और आनंद उसके भीतर बना हुआ रहता है।
___ जीवन में इतना बोध काफी है कि मैं प्रसन्न रहूँगा, ऐसी ही क्रियाएँ करूँगा जिनकी प्रतिक्रियाएँ सदा मधुर रहें; अगर किसी और के द्वारा गलत विचार, गलत टिप्पणी, कुव्यवहार हो भी जाए तो यह मानकर शांत रहूँगा कि जरूर अतीत में मैंने ऐसे बीजों का वपन किया होगा, तभी तो ऐसी प्रतिध्वनियाँ लौटकर आती हैं। भविष्य मेरा स्वर्णिम और मधुरिम है क्योंकि वर्तमान में ऐसे ही बीज बोता हूँ, ऐसे बीज-वपन और सिंचन के लिए सजग रहता हूँ जिनसे सुन्दर फूल खिलते हैं, छाँहदार पत्ते लगते हैं, रस भीने फल निपजते हैं । हाँ, यह जीवन-दृष्टि ही वर्तमान को शान्त
और शालीन बनाती है और यही भविष्य के धरातल पर सुन्दर इन्द्रधनुष साकार करती है।
०००
५३
MO RAN लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org