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दी जाए, क्योंकि उससे बयां का घर ही तहस-नहस होता है । सीख वाहि को दीजिए, जाको सीख सुहाय । सीख न दीजे बान्दरा, घर बयां का जाय ॥ कहते हैं : एक बार किसी चौराहे पर दो युवक आपस में गुत्थम-गुत्थ हो रहे थे। एक ने कहा-अब ज्यादा ही बकवास की, तो मैं तेरी बत्तीसी तोड़ दूंगा। दूसरे ने कहा-जा, तू क्या मेरी बत्तीसी तोड़ेगा, अगर मेरा चूसा पड़ गया तो तेरे चौंसठ दाँत तोड़ दूंगा।
एक आदमी उन दोनों की बगल में खड़ा उनकी तू-तू मैं-मैं सुन रहा था। उससे न रहा गया। उसने कहा-जनाब, जरा रुकिये । आपने कहा कि मैंने घूसा मारा तो तेरे बत्तीस दाँत टूट जाएँगे, यह बात तो समझ में आई, मगर यह बात समझ में नहीं आई कि दूसरे सज्जन के घूसे से चौसठ दाँत कैसे टूटेंगे? दाँत तो आखिर बत्तीस ही होते हैं । उसने कहा—मुझे पता था कि तू जरूर बीच में बोलेगा, इसलिए मैंने तेरे बत्तीस दाँत भी इसके साथ जोड़ लिये थे।
किन्हीं दो के बीच तीसरे का प्रवेश सदा ही घातक होता है । बस अपना प्रयास यही हो कि तू तेरी संभाल, छोड़ शेष जंजाल । तू तेरे में मस्त रहना सीख। जिंदगी में चाहे जितनी विपरीत परिस्थिति आ जाए, मगर हर हाल में तुम अपने आपको सकारात्मक बनाये रखो । जिंदगी में प्रतिक्रियाओं से बचाये रखने के लिए यह अमृत मंत्र है।
___ मैंने अपनी जिंदगी में कभी भी अपनी माँ के चेहरे पर गुस्सा नहीं देखा। हम पाँच भाई थे, पाँचों की उम्र लगभग बराबर थी। इसलिए माँ को तंग किया करते थे, लेकिन उसके चेहरे पर गुस्से की हल्की लकीर भी नहीं देखी। हमें याद नहीं कि हमारी माँ ने कभी हमें डाँटा हो । आज वह माँ साध्वी-जीवन में है, लेकिन उनका कहा टालने का साहस आज उसकी किसी भी संतान में नहीं है। उनके संस्कार हर संतान का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।
एक बार मैंने अपनी माँ से पूछा कि माँ, मैंने तुम्हारे चेहरे पर कभी शिकन नहीं देखी। इसका क्या कारण है ? पता चला कि अगर बड़े लोग माँ को डाँट देते, तो वे सोचा करतीं कि ठीक है, बड़े हैं । बड़े नहीं कहेंगे तो कौन कहेगा? विपरीत परिस्थितियाँ आईं, मगर फिर भी सकारात्मक और जब कोई छोटे बच्चे गलती कर जाते, तो वे उन्हें डाँटती नहीं थीं। सोचती थीं कि बच्चे हैं, बच्चों से गलती नहीं होगी, तो किससे होगी?
प्रतिक्रियाओं से परहेज रखें
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