Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 56
________________ दुष्परिणाम उसे ही भोगने पड़ें। मुझमें सामायिक और समता कैसे आई, कैसे मैं क्रोध और प्रतिक्रियाओं से उपरत हुआ, इसके पीछे एक प्रेरणा रही । सारे लोग जानते हैं कि भगवान कृष्ण के समक्ष शिशुपाल की माँ ने आकर कहा था—'भविष्यवाणी हुई है कि तुम शिशुपाल का वध करोगे । कृष्ण, मैं तुमसे आज यह वरदान चाहती हूँ कि तुम शिशुपाल का वध नहीं करोगे।' कृष्ण ने कहा—'बहिन, मैं ऐसा तो कोई वचन नहीं दे सकता हूँ । हाँ, इस बात के लिए जरूर आश्वस्त कर सकता हूँ कि मैं उसकी निन्यानवें गलतियों को माफ कर दूंगा।' शिशुपाल की माता ने कृष्ण को धन्यवाद देते हुए कहा—'इतना भी बहुत है । निन्यानवें गलतियाँ तो बहुत होती हैं, मैं अपने बेटे को सदा सजग र गी कि तुम कभी भी कृष्ण के प्रति कोई गलती मत कर बैठना।' लेकिन शिशुपाल एक पर एक गलती करता चला गया, प्रत्येक गलती को दोहराता चला गया। जिस दिन निन्यानवें गलतियाँ पूरी हुईं कि सौंवी गलती पर सुदर्शन-चक्र चल पड़ा । मैं इस घटना से प्रमुदित हो उठा । मुझे एक नया बोध मिल गया कि अगर कृष्ण किसी की निन्यानवें गलतियों को माफ कर सकते हैं तो हम किसी की नौ गलतियों को तो माफ कर ही सकते हैं । जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में संकल्प ले लिया, वह बोध पा लिया कि मैं किसी की नौ गलतियों को जरूर माफ करूँगा, तो वह न कभी क्रोध की ज्वालाओं में झुलसेगा, न कभी प्रतिक्रियाओं में उलझेगा। वह अपने जीवन में चित्त की शांति का स्वामी बना रहेगा, सदा शांत और सौम्य बना रहेगा। कमी न देखें और की अगर आप चाहते हैं कि आप प्रतिक्रियाओं से बचे रहें, तो सदा इस बात का बोध रखें कि आप अपनी ओर से कभी किसी की कमी निकालें, न ही किसी की कमी का उसे बोध करायें। दुनिया में कोई विरला ही होगा, जो अपनी कमियों और गलतियों के बारे में जानना चाहता हो। अगर आपने किसी की गलतियाँ निकालनी शुरू की, तो बदले में वह आपको ऐसी-ऐसी गलतियाँ निकालना शुरू करेगा कि आपके लिए उन्हें पचाना कठिन होगा। ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति अपने आप में पूर्ण नहीं होता, कमियाँ हर किसी में होती हैं । अगर कमियों की तरफ ध्यान दोगे तो तुम किसी व्यक्ति का उपयोग नहीं कर पाओगे। अगर गुणों की ४९ MONSOONIRMAN लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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