Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 52
________________ संतान नहीं, संस्कार भी एक पिता अगर घर में बैठकर गाली-गलौच करता है, शराब और तंबाकू का सेवन करता है तो मानकर चलें कि उसका बेटा भी ऐसा ही सीखेगा । एक पिता वह होता है जो संतान को जन्म भर देता है; एक पिता वह होता है जो अपनी संतति को संपत्ति देता है और एक पिता वह होता है जा अपनी संतति को संस्कार देता है । अगर तुम झूठ बोलोगे, तो मानकर चलो कि वही संस्कार तुम्हारी संतान में आएगा और तुम्हारा बेटा भी झूठ ही बोलेगा। स्वयं का चरित्र सम्यक उज्ज्वल रखकर हम अपनी आगे की पीढ़ियों में सम्यक् संस्कारों का संचार कर सकते हैं। हम अपने जीवन को बड़ी सहजता, मधुरता और प्रमुदितता से जीएँ, इतनी सहजता के साथ कि जीवन हमारे लिए ईश्वर का वरदान बन जाए। केवल क्रिया-प्रतिक्रिया के दौर से गुजरते रहे तो ध्यान रखो, यहाँ जगत की व्यवस्थाएँ कुछ इतनी विचित्र हैं कि यहाँ क्रिया की प्रतिक्रिया कभी भी उतनी नहीं होती, जितनी तुमने क्रिया की है, बल्कि उससे कई गुना अधिक लौटकर आती है जैसे चार बीज बोओ, तो चालीस फल उग आते हैं, ऐसी ही गालियों की खेती है, जहाँ चार गालियों के बदले चालीस गालियाँ ही सुनने को मिलती हैं । आपने वह प्रसंग सुना ही होगा कि सम्राट अकबर किसी जंगल से गुजर रहे थे । गर्मी की तपिश के कारण अपना कोट उतारकर बीरबल के कंधे पर रख दिया । अकबर के पुत्र को भी गर्मी लग ही रही थी, उसने भी पिता के पदचिह्नों का अनुसरण किया। उसने भी अपना कोट उतारकर बीरबल के कंधे पर रख दिया। अकबर को मजाक सझी। उसने कहा—'क्यों भाई बीरबल, एक गधे जितना भार तो हो ही गया होगा।' बीरबल ने कहा—'माफ करें हुजूर, एक का नहीं, दो का कहिए।' यह प्रतिक्रिया है । जगत वही लौटाता है, जो तुम उसे सौंपते हो। अगर किसी को गधा कहा तो मानकर चलें कि वह भी तुम्हें गधे से बढ़कर ही नाम देगा। गणित में तो शायद एक और एक दो होते हैं, लेकिन गालियों का गणित कुछ और है, जहाँ एक और एक, ग्यारह होते हैं; वे पल भर में एक सौ ग्यारह भी हो सकते हैं। इसलिए मेरे प्रिय आत्मन्, जीवन में अपनी ओर से सदा वे ही बीज बोए जाएँ, जिन्हें काटते वक्त हमें खेद, कटुता और वितृष्णा न हो। ४५ wom ens लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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