Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 45
________________ बिना किसी शर्म के आप उसकी सहायता करें । सुख-शान्ति पूछने से सुख-शान्ति नहीं होगी । सुख-शान्ति आपके सहयोगी बनने से ही आएगी। किसी रोगी से सुख-साता पूछने की बजाय मालूम करें कि उसे किसी चीज की जरूरत तो नहीं है । अगर उसकी स्थिति वाकई ठीक नहीं है तो उसके तकिये के नीचे पाँच सौ रुपयों के नोटों का एक लिफाफा गुपचुपरखकर रवाना हों । आदमी अपने रिश्तों को केवल औपचारिकता न बनाए वरन् आत्मीयता को वास्तविक तौर पर निभाने की कोशिश करे। __ अगर किसी की बेटी का विवाह हो रहा है और लगता है कि वह विवाह का खर्च उठा पाने में समर्थ नहीं है तो आपने परिचय के नाते, रिश्ते के नाते या इंसानियत के नाते दस-बीस हजार का गहना बनवाकर उसे दे दिया तो इससे आपके कोई फर्क नहीं पड़ेगा, मगर वह व्यक्ति जिंदगी भर के लिए आपका अहसानमंद हो जाएगा, जिंदगी भर आपको याद करेगा। इस तरह से आदमी, आदमी के दिल में अपनी जगह बना लेता है। इबादत हो इंसानियत की पंचम सूत्र यह है कि आदमी केवल अपने रिश्तेदारों के प्रति ही आत्मीयता न रखे, वरन् हर आदमी के काम आए। आदमी का आदमी के लिए काम आना ही आदमियत की आराधना है, इंसानियत की इबादत है । कल की ही बात थी कि एक महानुभाव हमारे पास आये और बोले- क्षमा करें आने में देरी हो गई।' हमने कारण पूछा तो उन्होंने बताया—'रास्ते में एक आदमी दुर्घटना का शिकार होकर लथपथ पड़ा था, भीड़ लगी हुई थी । मैं भी उसे देखने खड़ा हो गया। वह तड़प रहा था, लेकिन उसे अस्पताल ले जाने वाला कोई न था।' उस महानुभाव की बात सुनकर मैंने कहा—'जब उस घायल को कोई भी अस्पताल ले जाने वाला नहीं था, तो आप उसे ले जा सकते थे। संभव है कि कल हम भी दुर्घटनाग्रस्त हो जाएँ और लोग हमारा भी तमाशा देखें ।' हर घायल के प्रति, हर जरूरतमंद के प्रति आदमी की सहानुभूति होनी ही चाहिए । वे ही हमारी सहानुभूति के असली पात्र हैं । उसने कहा, आपकी बात सर-आँखों पर, इसीलिए आने में देर हुई। साधुवाद ! तुम्हारी सहानुभूति किसी पुण्यात्मा के प्रति ही नहीं अपितु किसी औरों का दिल जीतें ३८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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