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प्रतिक्रियाओं से परहेज रखें
यह सारा जगत हमारा अपना ही आईना है। आईने में वैसी ही छवि उभरकर
'आती है, जैसा हमारा रूप-रंग-आकार होता है । क्रिया प्रतिक्रिया के अनुरूप ही होती है। कोई भी प्रतिक्रिया किसी भी क्रिया के विपरीत नहीं होती । यह सारा जगत ध्वनि और प्रतिध्वनि के नियम के आधार पर चलता है, कर्म और कर्म-परिणति के नियम के आधार पर संचालित होता है । यही जीवन और जगत का नियम है। क्रिया मधुर हो, मधुर प्रतिक्रिया के लिए
जो व्यक्ति चाहता है कि उसके जीवन में प्रतिक्रियाएँ मधुर हों, उसे अपने जीवन में मधुर क्रियाओं का ही बीजारोपण करना होगा । दूसरों के द्वारा गीतों की सौगात पाने के लिए हमें गालियों से परहेज रखना होगा। यह जीवन-जगत की व्यवस्था है कि अगर तुम अपनी ओर से गीत गुनगुनाओगे तो तुम्हें औरों के द्वारा गीत ही लौटकर मिलेंगे। वहीं अगर गालियों की बौछार करोगे तो औरों के द्वारा गालियों के केक्टस ही तुम्हें भेंट में मिलेंगे। धरती पर आज तक किसी को काँटों के बदले में फूल नहीं मिले और किसी को फूलों के बदले में काँटे नहीं मिले हैं। महान् लोग औरों के द्वारा काँटों को बोये जाने के बावजूद उन्हें अपनी ओर से फूल ही लौटाते हैं । राम के भीतर तो राम के दर्शन हर कोई कर लेता है, मगर असली
Po se लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
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