Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 37
________________ है जब तुम जिस रास्ते से गुजर जाओ, उस रास्ते से तुम्हारे साथ दस हाथ और खड़े जाएँ; तुम्हारा गुजरना भी हर गली-मौहल्ले को तरंगित और आंदोलित कर दे । आदमी आदमी के दिल में कितनी जगह बना पाया, यही मूल्यवान है । आदमी के धन की कीमत उसके परिवार के लिए होती है, दूसरों के लिए तो मूल्य तुम्हारे बरताव का है। कपूर अगर जल भी जाता है तो अपनी पहचान, अपनी मौजूदगी का अहसास छोड़ जाता है । तुम जिए या मर गए, तुम्हारी चिता जली कि तुम चैतन्य रहे। मुद्दे की बात यह है कि चिता पर जलने के बाद भी तुम अपनी सुवास दुनिया में छोड़ जाओ । आखिर, मनुष्य का विमल यश ही एकमात्र अमर होता है । 1 एक बहुत प्यारा प्रसंग है जगडू शाह के जीवन का । जगडू शाह एक बहुत बड़ा दानवीर और साहूकार हुआ। उसने अपनी जिंदगी में केवल राष्ट्र के लिए ही अपनी संपदा को समर्पित नहीं किया, वरन् मंदिरों के लिए भी, और तो और मस्जिद के लिए भी उसने अपनी थाती और संपदा का उपयोग किया । कहते हैं कि किसी समय जगडू शाह का व्यापार ठेठ ईरान के दुरमुज बंदरगाह से होता था । उसी बंदरगाह से नुरुद्दीन का भी व्यापार होता था । दोनों के वहाँ सौ-सौ जहाज खड़े रहते थे । एक बार की बात है, वहाँ नीलम का एक पत्थर बिक्री के लिए आया । उस पत्थर को जगडू शाह के मुनीम ने लेना चाहा, लेकिन नुरुद्दीन के आदमियों ने यह कहकर वह पत्थर अपने हाथों में ले लिया कि इस तट पर पहला हक नुरुद्दीन का है, क्योंकि वह यहाँ का मूल निवासी है, जबकि जगडू शाह तो परदेशी है । बात के बढ़ते कितना वक्त लगता है ! बात भी ऐसी अड़ गई कि मुनीम ने कहा कि पहले मैंने पत्थर को देखा और जगडू शाह का नाम मैंने इस पर स्थापित कर दिया, यह पत्थर जगडू शाह के पास ही रहेगा । ईरान के बादशाह के अनुयायियों ने उस पत्थर को नीलाम करना चाहा, तो नुरुद्दीन ने उसकी बोली लगाई। पत्थर तो इतना कीमती नहीं रहा, मगर बात जब नाक की हो, तो फिर कम-ज्यादा का ख्याल नहीं रहता । उसने कहा- 'एक हजार दीनार' । जगडू शाह के आदमियों ने कहा- 'दो हजार दीनार'। उसने कहा‘पाँच हजार दीनार’ । उधर से आवाज आई — 'पच्चीस हजार दीनार' । बात बढ़ती ही चली गई । नुरुद्दीन ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया । उसने - औरों का दिल जीतें Jain Education International For Personal & Private Use Only ३० www.jainelibrary.org

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