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क्रोध और अहं : स्वभाव के दुर्गुण
जो जितना झुकता है, समाज उसको उतना ही माथे पर बिठाता है और जो जितना अकड़ रखता है, वह समाज की नजर में उतनी ही नफरत का पात्र बनता है । आदमी के स्वभाव के दो दुर्गुण हैं—एक है घमण्ड और दूसरा है गुस्सा; एक है अहंकार और दूसरा है क्रोध । जिसका स्वभाव सौम्य हो चुका है, उस व्यक्ति को तो अगर गाली भी दी जाती है तो जवाब में बुद्ध जैसे लोग यही तो कहते हैं-धन्यवाद ! तुम मुझे जरा एक बात बताओ कि अगर कोई आदमी तुम्हारे घर मेहमान बनकर आए, तुम उसे भोजन परोसना चाहो और वह यदि भोजन स्वीकार न करे तो वह भोजन किसके पास रहेगा? इसी तरह मैं भी तुम्हारी गालियों को स्वीकार नहीं करता । अब बताओ, तुम्हारी गालियों का क्या हश्र होगा? गाली तो तब गाली बनती है जब हम गाली को स्वीकार करते हैं । गाली को स्वीकार ही न किया, उस पर ध्यान ही न दिया तो गाली वहीं पर खत्म हो गई। आग तब आग बनेगी जब उस आग को और ईंधन दिया जाएगा। आग तालाब में जाकर गिरेगी तो बुझ जाएगी। हमारा स्वभाव अगर सौम्य हो चुका है तो हम अपने आप में सागर हो गए।
अगर हम गाली को स्वीकार कर बैठे, तो स्वयं उलझ गए, फंस गए । इससे हमारा ध्यान उलझा, मन-हृदय उलझा । ध्यान रखें, पल भर का क्रोध आदमी का सारा भविष्य बिगाड़ सकता है। आदमी आठ प्रहर में जितना भोजन करता है, उसकी सारी ऊर्जा एक बार के क्रोध से नष्ट हो जाती है । जिस तरह कोई आदमी कहता है कि उसने भोग का उपयोग किया तो ऐसा करने से उसके शरीर का बल क्षीण हुआ तो गुस्सा करने वाले व्यक्ति का बल भी ठीक उसी कदर विनष्ट हो जाता है । बस, तरीका बदल जाता है, उत्तेजना तो वही की वही है । एक ही उपाय है कि आदमी सौम्य स्वभाव का स्वामी बने । उसके स्वभाव में हर क्षण सौम्यता हो । स्वभाव में सरलता, कोमलता, मृदुता श्रेष्ठ व्यक्तित्व के चरण हैं । वाणी हो मधुर
स्वभाव में सौम्यता लाने वाला दूसरा सूत्र है-वाणी में मधुरता हो, ताकि आदमी औरों के दिलों में सहजतया अपनी जगह बना सके । मधुर वाणी शीतल पानी की तरह होती है, वहीं गर्म वाणी गर्म पानी की तरह । पानी गर्म हो, तो हाथ
औरों का दिल जीतें
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