Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 40
________________ के नायाब नमूने के लिए छोटी-सी कोई कल्पना हो । आदमी उन छोटी-छोटी बातों को जीकर ही सच्चा आदमी बनता है और आदमी, आदमी के दिल में अपनी जगह बनाता है। स्वभाव हो सौम्य हम औरों के दिलों में अपनी जगह कैसे बनाएँ, इस सन्दर्भ में कुछ बेहतरीन चरण लें । हम जो पहला चरण लेंगे, वह है-स्वभाव में सौम्यता हो । स्वर्ग उन्हीं के लिए होता है, जो अपने घमण्ड और गुस्से को काबू में रखते हैं तथा जो गलती करने वालों को माफ कर दिया करते हैं । जो दयालु और क्षमाशील होते हैं, उनसे केवल आदमी ही प्यार नहीं करता, भगवान भी प्यार किया करते हैं । जिस आदमी के स्वभाव में सरलता और सौम्यता है, चित्त में एक सदाबहार शांति है, वह साधारण आदमी नहीं होता, बल्कि धरती के लिए देवदूत के समान होता है । वह आदमी औरों के दिलों में अपनी जगह बना ही लेता है, जिसका स्वभाव बड़ा सौम्य है, सरल है, कोमल है। हम जरा अपने स्वभाव को देखें कि वह सौम्य है या क्रूर, क्रोधित है या शांत, विनम्र है या घमंडी । कहीं ऐसा तो नहीं है कि ज्यों-ज्यों हमारे पास पैसा बढ़ता है, शिक्षा और ज्ञान बढ़ता है, समाज में मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है, त्यों-त्यों हमारा घमंड भी बढ़ता चला जाता है । याद रखें, घमण्डी का सिर हमेशा नीचा ही होता है । जिंदगी भर भले ही हम दंभ पाले रहे, लेकिन मौत के आगे तो सिकंदर भी परास्त हो जाया करता है। एक पेड़ खजूर का होता है, जो इतना ऊँचा उठता है कि उसके फल हर किसी की पहुँच के बाहर हो जाते हैं। दूसरा पेड़ आम का होता है, जिसके फल आदमी की पहुँच के भीतर होते हैं। जब उस पेड़ के फल पकते हैं, तो पेड़ झुक जाता है । ज्ञानी की पहचान यह नहीं है कि वह घमण्डी हो, वरन् जो झुकना जानता है, वही ज्ञानी है । पैसे वाला वह नहीं है, जो पैसे को पाकर समाज को कुछ न समझे, पैसे वाला वह है जो औरों के बीच में जाकर अपने आपको उनके आगे और अधिक विनम्र कर लेता है । वह व्यक्ति संपत्तिशाली नहीं है, जो किसी मंदिर में प्रतिष्ठा करवाने के लिए खुद बोली ले और अपने हाथों से भगवान की मूर्ति चढ़ाए । वह आदमी असली नगरसेठ कहलाता है जो बोली स्वयं लेता है, लेकिन मूर्ति किसी और के हाथों से विराजमान करवाता है। - लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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