Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 33
________________ आत्मविश्वास का संबल कभी कमजोर नहीं होना चाहिए । विश्वास और साहस-हमारे जीवन की संजीवनी शक्ति बन जाए आँखों की रोशनी बन जाए। तुम चले तो आँधियाँ-तूफान खुद ही चल पड़ेंगे। सागरों की बात क्या, हिमगिरि सरीखे ढल पड़ेंगे। मत समझना ये निशाएँ पथ तुम्हारा रोक लेंगी, तुम जले तो दीप क्या, सूरज हजारों जल पड़ेंगे। ____ आवश्यकता है केवल विश्वास और पुरुषार्थ को जगाने की । हावी मत होने दो किसी भी हीनता और दीनता को अपने मन पर । जागो, जागे सो महावीर । जो बुझदिल है, वही कायर है। बचें, लालसाओं के चंगुल से तीसरी बात, जिसके कारण आदमी के चित्त पर सदा बोझ बना रहता है, वह है आदमी के मन में पलने वाली व्यर्थ की लालसाएँ, लालच की वृत्तियाँ । जीवन में सम्यक् कर्मों को सम्पादित करना, आजीविका के साधन जुटाना, सुखपूर्वक जीवन जीना मानवमात्र की आवश्यकता है । हर किसी व्यक्ति को श्रम करना चाहिए, विकास की ऊँचाइयों को छूना चाहिए, पर व्यर्थ की लालसाओं और तृष्णाओं में उलझकर जीवन को कोल्हू के बैल की वर्तुल-यात्रा नहीं बना बैठना चाहिए । स्वार्थ, लोभ, लालच आदमी को मानवता से वंचित कर देते हैं । उसे सूझता है केवल और पाऊँ और पाऊँ। लालसाएँ तो मकड़जाल की तरह होती हैं, जिसमें मन की मकड़ी घिर जाती है । लोभ-लालच के चलते आदमी दिन-रात घर से दुकान और दुकान से घर के बीच अपनी जिन्दगी पूरी कर देता है । मैंने बचपन में वह कहानी पढ़ी थी कि जिसमें एक गधा था, जो घर से घाट और घाट से घर के बीच अपनी जिन्दगी पूरी कर देता है। मुझे यह प्रतीक बड़ा प्यार लगा। प्यारा इसलिए लगा, क्योंकि जब इंसान को पढ़ा तो लगा कि इंसान भी तो ऐसा ही जीवन जीता है । वह भी तो घर से दुकान और दुकान से घर के बीच अपनी जिन्दगी को झोंक देता है। दो दिन पहले एक महानुभाव हमारे पास बैठे थे, शायद किसी संत ने उनको संकेत किया कि जब समय मिले तो मंदिर-दर्शन का जरूर लाभ उठाएँ तो उन्होंने कहा—'मैं तो दुकान चला जाता हूँ ।' उनसे पूछा, 'कितने बजे जाते हो?' ‘सुबह छह बजे', उन्होंने जवाब दिया। मन के बोझ उतारें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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