Book Title: Lakshya Banaye Purusharth Jagaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 25
________________ होकर कहेंगे कि वत्स, तू क्या माँगता है ? तुम कहोगे कि अगर देना ही है तो सदा-सदा यह जीवन ही देना; और कुछ नहीं चाहिए। तुम अगर मुझे दुःख भी दोगे तो भी दुःख, दुःख न लगेगा, क्योंकि मैंने हर दुःख को अपने लिए सुख का सेतु बना लिया है। जो व्यक्ति सलीब पर चढ़ाए जाने के बावजूद कहता है कि 'मेरे प्रभु, तू इन्हें क्षमा कर । ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं ?' इतनी करुणा, प्रेम की ऐसी रसधार बहाता है, तुम जरा सोचो तो सही, उस व्यक्ति के लिए केवल जीवन ही आनंद का वरदान नहीं होता, मृत्यु भी जीवन का महोत्सव बन जाया करती है । जीवन को बंधन की बेड़ी भी बनाया जाता है और स्वर्ग का सेतु भी। हर अभाव में, हर कमी में जीवन को वैसे ही रोशन कर सकते हो, जैसे अँधेरे कमरे में कोई एक दीप जलता है और जैसे कीचड़ के बीच कोई कमल खिलता है। लोग जीवन को बोझिल मन से जीते हैं और बोझिल मन से ही जीवन की गतिविधियों को संपन्न करते हैं । अगर बेटे से यह कह दिया जाए कि बेटा, जाकर ब्रेड का एक पैकेट ले आओ तो बेटा कहता है—'ओफ् ! पापा, अब ब्रेड के लिए क्या जाना ! मम्मी ने परोंठा बनाया है, उसी को खा लीजिए न।' बोझिल मन से ब्रेड खरीदने जाओगे तो तुम्हें वह ब्रेड भी कुत्ते का भोजन ही दिखाई देगी। प्रफुल्लित हृदय से जाओगे तो तुम बासी ब्रेड में भी कोई ताजी ब्रेड चुनकर ले आओगे, काँटों में भी फूल तलाश लोगे। कार्य प्रफुल्लित हृदय से किया जाए तो कोई कार्य बोझिल नहीं होता । कार्य स्वयं परमात्मा की प्रार्थना बन जाता है। मन का बोझ दूर हटाएँ कोई भी व्यक्ति अपने कंधे पर बोझा तभी तक लादता है, जब तक वह सामान एक जगह से दूसरी जगह तक न पहुँच जाए। उसे तुम मूर्ख न कहोगे तो क्या कहोगे जो रात को सोया था तब तो तकिया लगाकर सोया था और जब दिन में चल रहा है तो भी तकिए को अपने माथे से लगाकर चलता है । रात के लिए वह सुख का साधन रहा होगा, पर दिन के लिए तो वह चित्त का बोझा बन चुका है । तुम अगर कहो कि मैं भला इस तकिए को कैसे छोड़ दूं, तो यह तुम्हारा बचकानापन है । ऐसे ही अगर सोचते हो, चिन्तन करते हो, मगर उस ऊहापोह से मुक्त नहीं हो पाते, तो वह चिंतन भी चिंता का कारण बन जाया करता है । जब जरूरत हुई तो सोचो और जब जरूरत न हुई तो मन शान्त—'ब्लैंक' कर लिया, मन के बोझ उतारें १८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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