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हुए होगा । उसकी सौम्यता, शालीनता और आनंद ही उसका उत्सव होगा । उत्सवों के लिए उसे मेलों-महोत्सवों और पर्यों की जरूरत नहीं पड़ेगी। उसका पलक खोलना और कदम बढ़ाना भी किसी मेले को निमन्त्रण होगा।
स्वर्ग और नरक—इसी जीवन के दो पर्याय हैं । स्वर्ग के गीत और नरक का आतंक—दोनों जीवन के ही अवदान हैं । स्वर्ग के गीतों को इसी जीवन से निनादित किया जा सकता है । मरने के बाद तो मुझे नहीं मालूम कि हमारे बाप-दादों को कितना स्वर्ग मिला होगा । स्वर्ग तो उन्हीं को मिलता है, जिन्होंने अपना जीवन स्वर्ग बनाया है । हम चाहे मरने के बाद किसी के नाम के नीचे स्वर्गीय लिख दें, मगर उसको नरक में जाने से कोई रोक नहीं सकता, क्योंकि उसने अपना जीवन नरक बनाकर जीया था। हमने अगर क्रोध के साथ अपना जीवन जीया, तो मरने के बाद हमें चंडकौशिक बनने से कोई नहीं रोक सकता। नरक उनको मिलता है जिनका जीवन आज नरक है; स्वर्ग उनको मिलता है, जिनका जीवन आज स्वर्ग है । स्वर्ग और नरक दोनों ही जीवन के पर्याय और परिणाम हैं ।
जो व्यक्ति हर हाल में मस्त है, वह नरक को भी स्वर्ग बनाने की कला जानता है । जिसने जीवन को स्वर्ग बनाना सीख लिया है, जीवन उसके लिए वरदान है, सौगात है । मैं जीवन का हर हाल में आनंद उठाता हूँ; चाहे कोई हमें गाली दे या स्तुति करे । जीसस ने तो सलीब का भी आनंद उठाया, हम कम-से-कम किसी की गाली का तो आनंद उठा ही सकते हैं । मीरां ने तो विष-पान को भी अमृत-भाव प्रदान कर दिया । हम किसी की उपेक्षा और उपहास के विष का तो सामना कर ही सकते हैं ना ! अगर जीने की यह कला आ जाए तो सच, तुम्हारा हर कार्य मुक्ति का द्वार होगा। प्रसन्नमन से हो हर काम
अगर बेमन से अपने कार्य को संपादित करोगे तो तुम्हारा हर कार्य तुम्हारे लिए बंधन की बेड़ी बन जाएगा और प्रफुल्लित हृदय से अगर यहाँ पर झाडू भी लगाओगे तो तुम्हारा झाडू लगाना भी तुम्हारे लिए मुक्ति का सोपान हो जाएगा। तुम कितने बोझिल मन से अपने जीवन को जीते हो, तुम्हारे लिए जीवन उतना ही बोझिल, बंधन की बेड़ी और नरक का द्वार बन जाएगा। जिंदगी को अगर उत्सव के साथ, बगैर बोझिल मन के साथ जीना आ गया और तुम्हारे सामने शिव प्रकट
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KORA
RI लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
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