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नहीं होता, क्षणभंगुर तो मौत होती है । मौत क्षण में आती है और क्षण में चली जाती है । जीवन कभी भी क्षण में नहीं आता, न क्षण में जाता । जो क्षणभंगुर है, उस पर तो हम अपना इतना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और जिसे हमें पूरे सौ वर्ष जीना होता है, उसके लिए हम पूरी तरह से लापरवाह बने हुए हैं। जीवन में लक्ष्य का निर्धारण करो । अपनी असली संतुष्टि और तृप्ति तब मानना जब तुम्हारे हर दिन लक्ष्य की पूर्ति होती चली जाए और तुम हर दिन को यह मानो कि लक्ष्य की तरफ हमारे कदम आगे बढ़ चुके हैं।
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हम बचपन में खेला करते थे । माँ जिस आईने को देखकर अपना चेहरा सँवारा करती थी, हम उसे लेकर दोपहर में धूप में बैठ जाते और किसी कागज पर उसकी किरणें केंद्रित करते । तुम भी अपनी जिंदगी के सारे पुरुषार्थों को अगर कहीं एक जगह पर केंद्रित कर दो तो तुम पाओगे कि जीवन रोशन हो चुका है । ऐसे ही तुम अपने जीवन की ऊर्जा को कहीं भी केंद्रित कर दो तो वह ऊर्जा तुम्हारे जीवन के लिए चमत्कार साबित हो जाएगी। वह ऊर्जा मस्तिष्क में केंद्रित हो जाए तो तुम्हारा मस्तिष्क प्रखर हो जाएगा और तुम्हारे शरीर में किसी दर्द वाले स्थान पर केंद्रित हो जाए तो उस स्थान की रेकी जो जाएगी, उपचार हो जाएगा ।
जीवन की ऊर्जा को अगर केंद्रित करना आ जाए तो वह ऊर्जा अद्भुत परिणाम देती है। जिंदगी का अगर एक लक्ष्य बना दो, तो जीवन का चिराग रोशन हो उठेगा। आप रेलवे स्टेशन पर जाते हैं, तो क्या किसी ऐसी ट्रेन पर सवार होना चाहेंगे, जिसके गन्तव्य का कोई पता न हो ? जब बिना मंजिल की ट्रेन में आप सवार नहीं होना चाहते हैं, तो आपने जिंदगी की गाड़ी को ऐसी पटरी पर क्यों डाल रखा है जिसका कोई लक्ष्य नहीं है । जिंदगी का एक सुनिश्चित लक्ष्य हो ।
कर्मक्षेत्र के अर्जुन हों
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कहते हैं, गुरु द्रोणाचार्य छात्रों को तीरंदाजी का प्रशिक्षण दे रहे थे । कौरव और पाण्डव सारे एकत्र थे । मैड़ पर एक चिड़िया टंगी हुई थी । सभी से कहा गया उन्हें चिड़िया पर निशाना लगाना है। एक-एक करके विद्यार्थी आते। उन्हें सबसे पहले एक प्रश्न पूछा जाता कि उन्हें क्या दिखाई दे रहा है ? कोई कहता कि उन्हें पेड़ दिखाई दे रहा है, कोई, कहता कि चिड़िया दिखाई दे रही है, कोई कहता कि दूर क्षितिज तक सारे दृश्य दिखाई दे रहे हैं । उन सबको निशाना लगाने का मौका दिये
लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
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