Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 7
________________ नेक सलाह. " क्या मेग यह खयाल ठीक है कि विनाही शरण मुनि ज्ञानसुन्दरजी की छेड़छाड़ कर हमारे खरतर लोग बड़ी भारी भूल करते हैं। क्योंकि इनके न तो कोई आगे है और न कोई पीछे। इनका डङ्का चारों ओर बज रहा है। सत्य का संशोधन करने को इनकी शुरूसे आदत पड़ी हुई है । एवं सत्य कहने में व लिखने में यह किसी की भी खुशामदी नहीं रखते हैं । इस बात को भी इनको परवाह नही कि कोइ इनको सच्चा साधु माने या कोई ढोंगी, व्यभिचारी, दोषो, कलंकित वेषधारी, यति या गृहस्थ ही क्यों न माने ? । इन्हें इसका भी भय नहीं है कि कोई असभ्य शब्दों में आक्षेप कर इनपर कलंक ही क्यों न लगावें ? ये वीर इन सब बातों पर लक्ष्य नहीं देता हुआ अरनी धून में काम करता ही रहता हैं । पर खरतरगच्छवाले तो बहुत परिवारी है। बड़ी दुकान में घाटा नफा भी उसी प्रमाण से होता है, अतः क्या खरतरवाले अाज भूल गए हैं कि ? एक खरतर साधु को खरतरों के उपाश्रय में साध्वीके साथ मैथुन क्रिया करते हुए को खास खरतरों को साध्वीने ही रात्रि में पकड़ा था और वह साच्ची १ सं० १९९४ श्रावण शुद ११ पाली में खरतर साधी प्रमोद श्री की देली साध्वी अबवल श्री भाग गइ थी जिसकी एक पत्रिका प्रकाशित हुई जिसमें खरतरों-के साधु साधियों की व्यभिचार लीला का ठीक दिग्दर्शन करवाया हैं अधिक जानने की अभिलाषावाला उस पत्रिका को देख कर निर्णय करा के। यहाँ तो उस पत्रिका का एक अंश मात्र बतलाया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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