Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 43
________________ का निषेध कर उत्सूत्र की प्ररूपणा भी की थी । क्या खरतर इस बात को सिद्ध करने को तैयार है कि जिनदत्तसूरिने स्त्रीपूजा निषेध की वह शास्त्राऽनुसार की थी और इस बात को ८४ गच्छवाले मान कर जिनदत्तसूरि को प्रभाविक मानते थे ? । अन्यथा यही कहना पड़ता है कि खरतरोंने केवल हठधर्मी से " मान या न मान मैं तेरा महमान" वाला काम ही किया है । और इस प्रकार जबरन मेहनान बनने का नतीजा यह हुआ कि एक शहर में पहले तो सम. झदार खरतर दादाजी का काउस्सग करते समय " खरतर गच्छशंगार " कहते थे पर आधुनिक "चोरासीगच्छ शंगार" कहने लग गए । जिसका यह नतोजा हुआ कि खरतरगच्छवाला एक समय तपागच्छ के साथ में प्रतिक्रमण करते हुए खरतरोंने " चौरासी गच्छ शंगार हार " कहा इतने में एक भाई बोल उठा कि दादाजी हमारे गच्छ के शृंगारहार नहीं हैं आप ८३ गच्छशंगार बोले ! अब इसमें मेहमानों की क्या इजत रही । यदि रुद्रपाली गच्छ की मौजूदगी में यह कोउस्सग्ग किया जाता तो कुछ और ही बनाव बनता? । खैर ! खरतरगच्छवालों को चाहिये कि वे अपने प्राचार्य को चाहे जिस रूप में मानें, पर शेष गच्छवालों के शंगारहार बनाना मानो अपना और अपने आचार्य का अपमान कराना है । यदि खरतरों के पास ८४ गच्छवालों का कोई प्रमाण हो कि जिनदत्तसूरि को वे अपने शंगारहार मानते हैं, तो उसे शीघ्र जनता के सामने रखना चाहिये । यदि कोई किसी के गुणों पर मुग्ध हो उस गुणीजन को पूज्य दृष्टि से मानता भा हो तो उसकी संतान को इस बात का आग्रह करने से क्या फायदा है ? जैसे खरतरShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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