Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ __ इनके अलावा आचार्य बुद्धिसागरसूरि सम्पादित धातु प्रतिमा लेखसंग्रह में भी इस प्रकार सेंकडो शिलालेख है। इत्यादि सैकड़ों नहीं पर हजारों शिलालेख मिल सकते हैं, पर यहाँपर तो यह नमूना मात्र दिया गया है । इन शिलालेखों से यह सिद्ध होता है कि जिस ज्ञाति को आज ओसवाल जाति के नाम से पुकारते हैं उसका मूल नाम ओसवाल नहीं पर उएश, उकेश और उपकेश. वंश था । इसका कारण पूर्व में बता दिया है कि उएस-उकेश और उपकेशपुर में इस वंश की स्थापना हुइ । बाद देश-विदेश में जाकर रहने से नगर के नाम परसे जाति का नाम प्रसिद्धि में आया । जैसे अन्य जातियों के नाम भो नगर के नाम पर से पड़े वे जातिएँ आज भी नगर के नाम से पहिचानी जाती हैं । जैसे:-महेश्वर नगर से महेसरी, खंडवासे खंडेल. वाल, मेड़ता से मेड़तवाल, मंडोर से मंडोवरा, कोरंटसे कोरंटिया, पाली से पल्लिवाल, आगरा से अग्रवाल, जालोर से जालोरी, नागोर से नागोरी, साचोर से साचोरा, चित्तोड़ से चित्तोड़ा, पाटण से पटणी इत्यादि ग्रामों परसे ज्ञातियों का नाम पड़ जाता है। इसी माफिक उएश, उकेश; उपकेश जाति का नाम पड़ा है। इससे यह सिद्ध होता है कि आज जिसको श्रोसियाँ नगरी कहते हैं उसका मूल नाम आसियाँ नहीं पर उएसपुर था और आज जिनको ओसवाल कहते हैं उनका मूल नाम उएस, उकेश और उकेशवंश ही था । उपकेशवंश का जैसे उपकेशपुर से सम्बन्ध हैं वैसा ही उपकेशगच्छ से हैं क्यों कि उपकेशपुर में नये जैन बनाने के बाद रत्नप्रभसूरि या श्राप को सन्तान उपकेशपुर या उसके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68