Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 59
________________ आसपास विहार करते रहै अतः उन समूह का ही नाम उपकेशगच्छ हुआ है, अतएव उपकेशवंश का गच्छ उपकेश गच्छ होना युक्तियुक्त और न्यायसंगत ही हैं । इतना ही क्यों पर इस समय के बाद भी ग्रामों के नाम से कइ गच्छ प्रसिद्धि में आये है जैसे कोरंटगच्छ, शंखेश्वरमच्छ, नाणावालगच्छ, वायटगच्छ, संडेरागच्छ, हर्षपुरियागच्छ, कुर्चपुरा गच्छ, भिन्नमालगच्छ, साचौरागच्छ - इत्यादि । यह सब ग्रामों के नाम से अर्थात् जिस जिस ग्रामों की और जिन जिन साधु समुदाय का अधिक विहार हुआ वे वे समुदाय उसी ग्राम के नाम से गच्छ के रूप में ओलखाने लग गई । अतएव उपकेशवंश का मूल स्थान उपकेशपुर और इसका मूल गच्छ उपकेशगच्छ ही हैं । हाँ, बाद में किसी अन्य गच्छ का अधिक परिचय होने से वे किसी अन्य गच्छ की क्रिया करने लग गइ हो यह एक बात दूसरी है पर ऐसा करनेसे उनका गच्छ नहीं बदल जाता है । अतएव उएश - उकेश - उपकेशवंश वालों का गच्छ उपकेशगच्छ ही हैं । ( ६ ) आचार्य रत्नप्रभसूरिने उपकेशपुर ( श्रोसियाँ ) में सवाल नहीं बनाए तो फिर ये किसने और कहाँ बनाये ? तथा ये ओसवाल कैसे कहलाए ? क्या हमारे खरतर भाई इसका समुचित उत्तर दे सकेंगे ? = ( ७ ) यदि खरतरगच्छीय आचार्योंने ही श्रोसवाल बनाये हो तो फिर इन ओसवालों के मूलवंश के आगे उपकेशवंश क्यों लिखा मिलता है जो कि हजारों शिलालेखों में आज भी विद्यमान हैं हमारा तो यही एकान्त सिद्धान्त है कि यह उपकेशवंश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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