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आशा है, इस समय भो यह पुस्तक पढ़कर वे लोग एकदम चौक उठेगे, और अपने अज्ञ भक्तों को अवश्य भड़कावोंगे, पर मेरे खयाल से अब तो खरतरगच्छीय साधु एवं श्रावक इतने अज्ञानो नहीं रहे होंगे किविना पुस्तक को श्राद्योपान्त पढे वे मात्र क्लेशी साधुओं के बहकावे में आकर अपना अहित करने को तैयार हो जायं ।
मैंने मेरो किताब में खरतरगच्छोय आचार्य तो क्या पर किसी गच्छ के प्राचार्यो की निन्दा नहीं की है। क्यों कि किसी गच्छ के आचार्य क्यों न हो-पर जिन्होंने जैन धर्म की प्रभावना की है मैं उन सब को पूज्य दृष्टि से देखता है । हाँ-आधुनिक कई व्यक्ति पक्षपात के कीचड़ में फसकर मिथ्या घटनाओं को उन महान् व्यक्तियों के साथ जोड़कर उनकी हँसी करना चाहते हैं उन लोगों के साथ मेरा पहिले से हो विरोध था और यह प्रस्तुत पुस्तक भी आज उन्ही व्यक्तियों के मिथ्यालेख के विरोध में लिखी है। इसमें पूर्वाचार्यो की निन्दा का कहों लेश भी नहीं आने दिया है। मैं उन मिथ्या पक्षपाती लोगों से अपील करता हूं कि आप में थोड़ो भी शक्ति और योग्यता है तो न्याय के साथ मेरी की हुइ समीक्षाओ का प्रमाणिक प्रमाणों द्वारा उत्तर दे ।
बस, आज तो मैं इतना ही लिख लेखनी को विश्रांति देता हूँ और विश्वास दिलाता हूं कि यदि उपर्युक्त बातों के लिए खरतरों की ओरसे कोई प्रमाणिक उत्तर मिलेगा तो भविष्य में ऐसी २ अनेक बाते हैं जिन्हें लिख मैं खरतरों की सेवा करने में अपने को भाग्यशाली बनाऊँगा। 6. प्यारे खरतरों ! पूर्वोक्त बातों को पढ़कर आप एकदम उखड़ नहीं जाना, तथा चिढ़के गालीगलौज देकर कोलाहल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com