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खरतरगच्छ के प्राचार्यने भी पूर्व कार्यों में से एक भी कार्य करके बतलाया है कि आप फूले ही नहीं समाते हो ? । आप नाराज न होना, हमारी राय में तो खरतराचार्योंने केवल उत्सूत्रप्ररूपणा करने के और जैन समाज में फूट कुसंप बढ़ाने के सिवाय और कोई भी काम नहीं किया और आज भी श्वेताम्बर समाज में जो कुसम्प है वह अधिकतर खरतरों के प्रताप से ही है। अन्यथा आप यह बतावें कि " जिस ग्राम में खरतरों का अस्तित्व होने पर भी उस ग्राम में फूट कुसम्प नहीं है, ऐसा कौन ग्राम है ? ।" दूर क्यों जावें? आप खास कर नागौर का वर्तमान देखिये-श्रीमान् समदड़ियाजो के बनाये हुए स्टेशन के मन्दिर की प्रतिष्ठा के समय क्या श्वेताम्बर, क्या दिगम्बर और क्या स्थानकवासी सभीने अभेदभाव से एकत्रित होकर जैन धर्म की प्रभावना की थी और इसके लिये जैनेतर जनता जैन धर्म की मुक्तकण्ठ से भूरिभूरि प्रशंसा कर रही थी; किन्तु जव खरतरों का श्रागमन होने का था तब खरतरगच्छीय अज्ञलोंगोने अपने प्राचार्यों की अगवानी के निमित्त ही मानों जैन श्वेता. म्बर मूर्तिपूजक समाज के बंधे हुए प्रेम के २ टुकड़े कर दो पार्टिये बना डाली। यही कारण है कि अब तपानच्छ के बृहद समुदाय को भी खरतर साधुओं की क्लेशमय प्रवृत्ति के कारण उनका बॉयकाट करना पड़ा है। समझ में नहीं आता है कि खरतरलोग ऐसी दशा में विनाशिर पैर की गप्पें हांक अपने प्राचार्यों का कहाँ तक प्रभाव बढाना चाहते हैं ? । खरतरों को यह सोच लेना चाहिये कि अब केवल हवाई किल्लों से मानीहुइ इजत का भी रक्षण न होंगा; क्यों कि वर्तमान में तो जनता जरासी बात के लिए भी प्रामाणिक प्रमाण पूछती है और उसीको हो मान देती है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
२ टुकड़े कर
का समुदाय को भायही कारण है