Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 60
________________ का निर्देश-उपकेशपुर और उपकेशगम्छ को ही अपना मूलस्थान और उपदेशक उद्घोषित करता है। (८) यदि खरतरगच्छ के प्राचार्योने हा ओसवाल बनाए हैं तो फिर इन ओसवालों की जातियों के साथ उप. केशवंश नहीं पर खरतरवंश ऐसा लिखा होना चाहिये था, पर ऐसा कहीं भी नहीं पाया जाता है । अतः आप को भी मानना होगा कि प्रोसवालों का मूलवंश ऊपकेशवंश है और यह उपकेशगच्छ एवं उपकेशपुर का ही सूचक है। जैसे-नागोरियों का मूल स्यान नागोर, जालोरियों का जालोर, रामपुरियों का रामपुर, फलोदियों का फलोदी, और बोरूदियों बोकदा है। वैसे ही उपकेशियों का मूल स्थान उपकेशपुर (ओसियाँ) है तथा कोरंट, शखेसग, नाणावाल, संडेरा, कुर्चपुरा, हर्षपुरा, आदि गच्छ गाँवों के नाम से ही हैं ऐसे ही उपकेश गच्छ भी उपकेशपुर में उपकेशवंशीया धावकों का प्रतिबोध होने से प्रसिद्धि में आया है। (९) यदि खरतरगच्छाचार्योने हो ओसवाल बनाये ऐसा कहा जाय तो यह कहाँ तक सङ्गत है ? क्योंकि ओसवाल ( उपकेशवंश ) के अस्तित्व में आने के समय तक खरतरों का जन्म भी नहीं हुआ था । कारण-खरतरगच्छ तो प्राचार्य जिनदत्तसूरि की प्रकृति के कारण विक्रम की बारहवी शताब्दी में पैदा हुआ है और ओसवाल (उपकेशवंशी) विक्रम पूर्व ४०० वर्षों में हुए हैं । अर्थात् खरतरगच्छ के जन्म से १५०० वर्ष पूर्व ओसवाल हुए हैं तो उन १५०० वर्ष पहिले बने हुए श्रोसवालों को खरतर गच्छाचार्याने कैसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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