Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 50
________________ ४८ दीवार नंबर १३ खरतरगच्छ पट्टावलि में लिखा हैं कि आचार्य जिनचंद्रसूरिने दिल्ली के बादशाह को बहुत चमत्कार बतलाना कर अपना भक्त बनाया बाद वि० स० १२२३ में आप का देहान्त भी दिल्ली में ही हुआ । समीक्षा-कोई भी जैनोचार्य इस प्रकार बादशाह वगैरह को अपना भक्त बनावे ईसमें केवल खरतरों को ही नहीं पर समग्र जैन समाज को खुशी मनाने की बात हैं पर वह बात तो सत्य होनी चाहिये न । हमारे खरतर भाइयों कों तो इस बात का तनक भी ज्ञान नहीं हैं कि देहली पर बादशाह का राज कब हुआ और जिनचन्द्रमूरि कब हुए थे जरा इतिहास के पृष्ठ उथल कर देखिये-विक्रम सं. १२४६ तक तो देहली पर हिन्दूसम्राट पृथ्वीराज चौहान का राज था बाद देहली का राज बादशाह के अधिकार में गया हैं तब जिनचन्द्रसूरि का देहान्त १२२३ में ही हो गया था फिर समझ में नहीं पाता हैं कि जिनचन्द्रसूरि दिल्ली के बादशाह को कैसे चमत्कार बतला कर अपना भक्त बनाया होगा ? शायद् जिनचन्द्रसूरि कालकर भूत, पीर या देवता हो कर बादशाह को चमत्कार बतला कर अपना भक्त बनायो हो तो यह बात ही एक दूसरी हैं। पर खरतर लोग इस प्रकार को अनगल बाते कर अपने आचार्यों की क्यों हाँसी करवाते हैं ऐसे लोगों को भक्त कहना चाहीये या मश्करा? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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