________________
४७
दीवार नंबर १२ कई खरतर लोग यह भी कह देते हैं कि जिनदत्तसूरिने अमावस की पूर्णिमा कर बतलाई थी ।
समीक्षा -यदि ऐसा हुआ भी हो तो इस में जिनदत्तसूरि की कौनसी अधिकता हुई ? कारण यह कार्य तो आज इन्द्रजालवाले भी कर के बता सकते हैं। क्या ऐसे इन्द्रजाल से आत्म-कल्याण हो सकता है ? शास्त्रकारोंने तो ऐसे कौतुक करनेवालों को जिनाज्ञा का विराधक बतलाया हैं | देखो ! " निशीथसूत्र " जिस में चातुर्मासिक प्रायश्चित | बतलाया है ।
फिर भी हम खरतरों को पूछते हैं कि इस बात के लिए आप के पास क्या प्रमाण है कि जिनदत्तसूरिने अमावस की पुनम कर दिखाई थी ? । खरतरों के बनाए गणधर सार्द्धशतक की बृहद्वृत्ति में जिनदत्तसूरि का संपूर्ण जीवन लिखा है । जिस में छोटी से छोटो बातों का उल्लेख है पर इस बात की गंध तक भी नहीं है कि दादाजीने अमावस की पूनम कर बतलाई थो । इस हालत में खरतरलोग जैनाचार्यों को ऐन्द्रजालिक बनाके उनकी हंसी करवाने में क्या फायदा समझ बैठे है ? | यह समझ में नहीं आता है कि यदि खरतरलोगों के पास कोइ प्राचीन प्रमाण हैं तो वे उन्हें प्रसिद्ध करा के आचार्यों को ऐन्द्रजालिक होना साबित क्यो नहीं करते ? |
X
X
X
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
x
www.umaragyanbhandar.com