Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 42
________________ ४० दीवार नंबर ९ आधुनिक कइ खरतर लोग प्रतिक्रमण के समय दादाजी का काउस्सग्ग करते हैं तब कहते हैं कि "चौरासी गच्छ शंगारहार" और आधुनिक लोग जिनदत्तसूरि के जीवन में बताते हैं कि ८४ गच्छ में ऐसा कोई भी प्रभाविक आचार्य नहीं हुआ हैं। इस से जिनदत्तमूरि को ८४ गच्छवाले ही मानते हैं । इत्यादि । समीक्षा:चौरासी गच्छों को तो रहने दीजिये पर जिनवल्लभसूरि को संतान अर्थात् जिनशेखरसूरि के पक्षवाले भी जिनदत्तसूरि को प्रभाविक नहीं मानते थे । यही कारण है कि जिनदत्तसूरि से खिलाफ होकर उन्होंने अपना रुद्रपालो नामक अलग गच्छ निकाला । जब एक गुरुके शिष्यों की भी यह वात है तो अन्य गच्छों के लिए तो बात ही कहां रही?। चौरासी गच्छों में जिनदत्तसूरि के सदृश कोइ भी आचार्य नहीं हुआ, शायद इसका कारण यह हो कि ८४ गच्छो में किसीने स्त्रीपूजा का निषेध नही किया परन्तु एक जिनदत्तसूरिने हो किया । और भी भगवान् महावीर के छ: कल्याणक, श्रावक को तीन वार करेमि भंते, सामायिक उच्चराना । पहिले सामायिक और बाद में इरियावाही आदि जिनशास्त्र के विरुद्ध प्ररूपणा किसी अन्याचार्योने नहीं को जैसी कि जिनदत्ससूरिने की थी। चौरासी गच्छोंवाले जिनदत्तसूरिको प्रभाविक नहीं पर उत्सूत्रप्ररूपक निलव जरूर मानते थे। और उन्होंने स्त्रीपूजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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