Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 28
________________ गन्ध तक भी नहीं है कि जिनदत्तसूरिने चोरडिया जाति एवं सवालाख नये जैन बनाये थे । संभव है कई ग्रामों में खरतरगच्छ के आचार्योने भ्रमण किया होगा और गुलेच्छा, पारख, सावसुखा आदि जो चोरड़ियों की शाखा हैं उन्होंने अधिक परिचय के कारण खरतरगच्छकी क्रिया करली होगी। इससे उनको देख कर आधुनिक यतियोंने यह ढाँचा खड़ा कर दिया होगा ? परन्तु चोरडिया किसी भी स्थान पर खरतरों की क्रिया नहीं करते हैं। हां गुलेच्छा, पारख वगैरह चोरड़ियों की शाखा होने पर भी कई स्थानों में खरतरों की क्रिया करते हों और उन्हें खरतर बनाने के लिए " चोरड़ियों को जिनदत्तसूरिने प्रतिबोध दिया " ऐसा लिख देना पड़ा है। जो " मान या न मान मैं तेरा मेहमान " वाली उक्ति को सर्वांश में चरितार्थ कर बतलाई हैं। पर कल्पित बात आखिर कहाँ तक चल सकती है ? इस चोरडिया जाति के लिए एक समय अदालतो मामला भी चला था और अदालतने मय साबूती के फैसला भी दे दिया था । इतना ही क्यों पर जोधपुर दरबार से इस विषय का परवाना भी कर दिया था। जिसकी नकल मैं यहां उधृत कर देना समुचित समझता हूँ। -: नकल : श्रीनाथजी मोहर छाप श्रीजलंधरनाथजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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