Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 30
________________ २८ अबार इणोंरेने लुकोरा जतियोंरे चोरडियोंरी खांपरी असरचो पड़ियो, जद अदालत में न्याय हुबोने जोधपुर, नागोर, मेड़ता, पीपाड़रा चोरडियोंरी खबर मंगाई तरे उणोंने लिखायो के मारे ठेठु गुरु कवलागच्छरा है तिणा माफिक दरबारसु निरधार कर परवाणो कर दियो हैं सो इण मुजब रहसी श्री हजूररो हुकम है । सं. १८७८ पोस वद १४ । इस परवाना के पीछे लिखा हैं ( नकल हजूररे दफ्तर में लोधी छे ) इन पांच परवानों से यह सिद्ध होता है कि अठाग गोत्रवाले कवला ( उपके ग ) गच्छ के उपासक हैं । यद्यपि इस परवाना में १८ गोत्रों के अन्दर से तीन गोत्र कुलहट चिंचट ( देसरड़ा ), कनोजिया इस में नहीं आये हैं। उनके बदले गदइया, जो चोरड़ियों की शाखा है, लुनावत और छाजेड़ जो उपकेश गच्छाचार्याने बाद में प्रतिबोध दे दोनों जातियां बनाई हैं इनके नाम दर्ज कर १८ की संख्या पूरो को है । तथापि मैं यहां केवल चोरडिया जाति के लिये हो लिख रहा है। शेष जातियों के लिए देखो" जैनजाति निर्णय" नामक मेरी लिखी हुई पुस्तक । ऊपर के शिलालेखों से और जोधपुर दरबार के पांच 'परवानों से डंका को चोट सिद्ध है कि चोरडिया जाति जिनदत्तसूरिने नहीं बनाई, पर जिनदत्तसूरि के पूर्व १५०० वर्षो के आचार्य रत्नप्रभसूरिने " महाजन संघ"बनाया था उसके अन्तर्गत प्रादित्यनाग गोत्र की एक शाखा चोरडिया है। जब चोरडिया जाति उपकेशगच्छ की उपासक है तब चोरडियों से निकली हुई गुलेच्छा, गदया, पारख, साषसुखा, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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