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में फिंकवा दी। इस चमत्कार को देख वे ब्राह्मण लोग दादाजी के भक्त बन गए । इत्यादि -
समीक्षा - अव्वल तो इस बात के लिये ख़रतरों के पास कोई भी प्रामाणिक प्रमाण नहीं हैं तब प्रमाणशून्य ऐसी मिथ्या गप्पें हांकने में क्या फायदा हैं ? और ऐसी कल्पित बातों से जिनदत्तसूरि की तारीफ नहीं प्रत्युत हांसी होती है । वास्तव में ८४ गच्छों में एक वायट नाम का गच्छ हैं उस में कई जिनदत्तसूरि नाम के आचार्य हुए हैं । यह गायवाली घटना एक वार उन वायट गच्छाचार्यों के साथ घटी थी । खरतरोंने वायट गच्छीय जिनदत्तसूरि व जीवदेवसूरि की घटना अपने जिनदत्तसूरि के साथ लिख मारी है ।
प्रभाविक चरित्र जो प्रामाणिक आचार्य प्रभावचन्द्रसूरिने विक्रम की चौदहवीं शताब्दी में बनाया है और वह मुद्रित भी हो चुका है उस में निम्नलिखित वर्णन है । पाठक इसे पढ़ सत्यासत्य का स्वयं विवेचन करलें ।
अन्यदा बटव: पाप-पटवः कटवो गिरा ॥ आलोच्य सुरभि कांचि - दंचन्मृत्युदशास्थिताम् ॥ १३१ ॥ उत्पाद्योत्पाद्य चरणान्निशायां तां भृशं कृशाम् ॥ श्रीमहावीरचैत्यान्तस्तदा प्रावेशयन् हटात् ॥ १३२ ॥ युग्मम्
गतप्राणां च तां मत्वा बहिः स्थित्वाऽतिहर्षतः ॥ ते प्राहुरत्र विज्ञेयं जैनानां वैभवं महत्
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॥ १३३ ॥
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