Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 35
________________ पूर्वोक्त जातियां कई स्थानों पर ढूंढिया और तेरहपन्थियों की क्रियाएं भी करती हैं। पर इस से यह मानने को तो आप भी तैयार न होंगे कि उन जातियों की स्थापना किसी दूढिये या तेरहपन्थी आचार्यने की है । अतएव यह बात हम बिना संकोच के कह सकते हैं कि खरतरों के किसी आचार्यने एक भी नया श्रोसवाल नहीं बनाया । आपने जो अपने उपासक बनाये हैं वे सब जैनसंघ में फूट डाल कर भगवान् महावीर के पांच कल्याणक माननेवाले थे उन्हे छः कल्याणक मनवा कर और स्त्रिये जो प्रभुपूजा करती थी ऊन से प्रभुपूजा छुडा कर अर्थात् उनके कल्याण कार्य संपादन में अन्तराय दे कर, जैसे ढूढियोंने जिन लोगोंको मूर्तिपूजा छुडा कर और तेरहपंथियोंने दया दान के शत्रु बना कर अपने श्रावक माने हैं वैसे ही आप खरतरोंने भी इन से बढ़के कुछ काम नहीं किया है । इस लिये किसी जैन को खरतरों की लिखी मिथ्या कल्पित पुस्तकों को पढ़ कर भ्रम में न पड़ना चाहिये । और अपनी २ जाति की उत्पत्ति का निर्णय कर अपने मूल प्रतिबोधक आचार्यों का उपकार और उनके गच्छ को ही अपना गच्छ समझना चाहिये । दीवार नंबर ५ कई खरतर भक्त यह कह उठते हैं कि कई ब्राह्मणोंने एक मृत गाय को जिनदत्तसूरि के मकान में डलवा दी । तब जिनदत्तसूरिने उस मृत गाय को ब्राह्मणों के शिवालय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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