Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 33
________________ और वे वहां पहुंचे। संघ रवाना होने के समय वासक्षेप देने में तकरार हो गई क्योंकि खरतराचार्यने कहा कि बाफना हमारे गच्छ के हैं, वासक्षेप हम देंगे और उपकेशगच्छवालोंने कहा कि बाफना हमारे गच्छ के श्रावक हैं अतः वोसक्षेप हम लोग देंगे । झगड़ा यहांतक बढ़ गया कि दोनों गच्छवाले जैसलमेर के महाराज गजसिंहजी के दरबार तक पहुंच गए। रावल गजसिंहजीने दोनों को साबूती पूछी तो उपकेशगच्छ. वालोंने तो अपने प्रमाण की बहियों दरबोर के सामने रख दी, पर खरतरों के पास तो केवळ जबानो जमा खर्च के और कुछ था ही नहीं । वे क्या सबूत देते ? । महाराजा गजसिंहजोने इन्साफ किया कि उपकेशगच्छवाले कुलगुरु हैं और खरतरगच्छवाले क्रियागुरु हैं । वासक्षेप देने का अधिकार उपकेशगच्छबालों को है क्योंकि बाफनों के मूल प्रतिबोधक आचार्य रत्नप्रभसूरि उपकेशगच्छ के ही हैं। बस! फिर क्या था? खरतरे तो मुंह ताकते दूर खड़े रहे और संघ प्रस्थान का वासक्षेप उपकेशगच्छीय यतिवर्योने दिया। संघ वहां से यात्रार्थ रवाना हुआ। इस विषय का उल्लेख विस्तार से बीकानेर की बहियों में है। शेष जातियों के लिए इतना समय तथा स्थान नहीं है कि मैं सबके लिए विस्तार से लिख सकं । तयापि संक्षेप में इतना अवश्य कह देता हूँ कि जिनदत्तसूरि के जोवन में जिन जातियों का नामोल्लेख किया है उन में एक भी जाति ऐसी नहीं है कि जो जिनदत्तसूरिने बनाई हो, क्योंकि नाहटा, राखेचा, बहुफूणा, दफ्तरी, चोपड़ा, छाजेड़, संचेती, पारख, गुलेच्छो, बलाह, पटवा, दुघड़, लुणावत, नावरिया, कांकरिया, और श्रीश्रीमाल प्रादि जातियाँ उपकेश गच्छाचार्य प्रति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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