Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 27
________________ चोरडिया जाति का मूल गोत्र आदित्यनाग है और उसके स्थापक आचार्य रत्नप्रभसूरि है। गोलेच्छा, पारख, गदइया, सावसुखा, नाबरिया, बुचा वगैरह ८४ जातिएँ उस आदित्यनाग गोत्र की शाखाएँ हैं । खरतरगच्छीय यति रामलालजीने अपनी " महाजनवंश मुक्तावली” नामक पुस्तक के पृष्ठ १० पर आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा स्थापित 'अठारह गोत्र में " अइचणागा" अर्थात् आदित्यनाग गोत्र लिखा है फिर समझ में नहीं प्राता है कि जिनदत्तसूरि का जीवन लिखनेवाले आधुनिक लोगोंने यह क्यों लिख मारा कि जिनदत्त मृरिने चोरडिया जाति बनाई ? । जहां चोरड़ियों के घर हैं वहां वे सबके सब आज पर्यन्त उपके रागच्छ के श्रावक और, उपकेशगच्छ के उपाध्य में बैठनेवाले हैं और उपके रागच्छ के महात्मा ही इनको वंशावलियों लिखते हैं । दूसरा आचार्य जिनदत्तसूरि का जीवन गणधर सार्द्धशतक की बृहद् वृत्ति में लिखा है परन्तु उसमें इस बातको १ खरतर यति रामलाल जाने अपनी " महाजनवंश मुक्तावली" किताब के पृष्ठ १० पर प्राचार्यरत्नप्रभसूरि द्वारा स्थापित महाजन. वंशके अठारह गौत्रों के नाम इस प्रकार लिखे हैं: " तातेड़, बाफना, कर्णाट, बलहरा, मोरक, कुलहट, विरहट, श्री(श्रीमाल, श्रेष्ठि, सहचेती ( संचेती), अाचणागा ( आदित्यनाग) भुरि, भाद्र, चिंचट, कुमट, डिडु, कनोजिया, लघुश्रेष्ठि. इनमें जो अइचणाग ( आदित्यनाग ) मूल गोत्र है। चोरडिया उसकी शाखा है जो उपर के शिलालेख में बतलाइ गइ है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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