Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 25
________________ २३ पूर्व मान्यता से पतित बनाकर अपने पक्ष में कर भी लिया हो तो इस में दादाजीने क्या बहादुरी की ? | क्योंकि उस समय जैनियों की संख्या कोई बारह करोड़ की थी और उसमें से यंत्र मंत्र तंत्र आदि कर सवालाख मनुष्यों को पतित बनाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है जिस से कि खरतरे अब फूले हो नहीं समाते हैं । यदि खरतर इसमें ही अपना गौरव समझते हैं, तो इससे भी अधिक गौरव ढूंढिया तेरहपंथियों के लिए भी समझना चाहिये । क्योंकि दादाजीने तो १२ करोड़ में से सवालाख लोगों को अपने पक्ष में किया, पर ढुंढिया तेरहपन्थियोंने तो लाखों मनुष्यो से दो तीन लाख लोगों को पूर्व मान्यता से पतित बना कर अपने उपासक बना लिए । कहिये ! अब विशेषता किस की रहीं ? ढूंढियों के सामने तुम्हारे दादाजी के सवालाख शिष्य किस गिनति में गिने जा सकते हैं ? | अस्तु ! आधुनिक जिनदत्तसूरि के भक्तोंने जिनदत्तसूरि का एक जीवन लिखा है । उसमें जिन जातियों का उल्लेख किया है उनमें से एक दो जातियों के उदाहरण मैं यहां दे देता हूं कि जिन जातियों कों जिनदत्तसूरि से प्रतिबोधित लिखी । वे जातियें इतनी प्राचीन हैं कि उस समय ये दादाजी तो क्या पर इन दादाजी की सातवीं पीढ़ी का भी पता नहीं था । अर्थात् वे जातिएँ दादाजी के जन्म के १५०० वर्षो पूर्व भी मौजूद थी । जैसा कि खरतरोंने चोरड़िया जाति के लिये लिखा है कि - ( १ ) चंदरी के राजा खरहत्थ को जिनदत्तसूरिने प्रतिबोध कर जैन बनाया, और चौरों के साथ भिड़ने से उसको जाति चोरड़िया हुई इत्यादि लिखा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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