Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 26
________________ રષ્ઠ अब देखना यह है कि चोरड़िया जाति शुरू से स्वतंत्र जाति है या किसो प्राचीन गोत्र की शाखा हैं ? यदि किसी प्राचीन गोत्र की शाखा है तो यह मानना पड़ेगा कि पहले गोत्र हुआ और बाद में उसकी शाखा हुई। इसके लिए यों तो हमारे पास इस विषय के बहुत प्रमाण हैं, जो चोरड़िया, बाफना, संचेती, रांक और बोत्थरों की किताब में विस्तार से लिखूँगा । पर यहां केवल दो शिलालेख और एक सरकारी परवाना की नकल देता हूं जो कि निम्न लिखित हैं:सं. १९२४ वर्षे मार्गशीर्ष सुद १० शुक्रे उपकेशज्ञातौ आदित्यनाग गोत्रे सा० गुणधर पुत्र सा० डाला भा० कपुरी पुत्र स० क्षेमपाल भा० जिणदेबाई पुत्र सा० सोहिलन भातृ पासदत्त देवदत्त भा० नामयुत्तेन पुण्यार्थ श्री चन्द्रप्रभ चतुविंशति पट्ट कारितः प्रतिष्ठा श्री उपकेशगच्छे कुकुदाचार्य सन्ताने श्री कक्कसूरिः श्रीभद्रनगरे " 66 बाबू पूर्णचंद्रजी नाहर सं. शि० प्र० पृष्ठ १३ लेखांक ५० x X X X "सं. १५६२ व० वै० सु० १० खौ उपकेशज्ञातौ भीआ दित्यनाग गोत्रे चोरड़िया शाखायां सा० डालण पुत्र रत्नपालेन स० श्रीपत व० धधुमलयुतेन मातृ पितृ श्रे० श्रीसंभवनाथ बिं० का० प्र० उपकेश गच्छे ककुदाचार्य (सं०) श्री देवगुप्तसूरिभिः बाबू पूर्ण सं० शि० प्र० पृष्ठ ११७ लेखांक ४९७ X X X x ऊपर दिये हुए शिलालेखों में पहले शिलालेख में आदित्यनाग गोत्र है और दूसरे में आदित्यनाग गोत्र की शाखा चोरड़िया लिखी है इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि X हम चोरबिया खरतर नहि है' नामक किताब देखो. • Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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