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जिनशेखरसूरिने आचार्य पदवी के लिए झगड़ा किया। जिनदत्तसूरि कहते थे कि मैं आचार्य होऊँगा और जिनशेखरसूरि कहते थे कि मैं प्राचार्य बनंगा । आखिर दोनों आचार्य बन गए। क्या युगप्रधान ऐसे ही होते हैं ? सकल संघ तो दूर रहा पर एक गुरु की संतान में भी इतना झगड़ा होवे और ऐसे झगड़ालुओं को युगप्रधान कहना क्या हमारे खरतरों का अन्तरात्म स्वीकार कर लेगा ?।।
(६) यदि "महाजनवंश मुक्तावली' पुस्तक के कथन को खरतर लोग सत्य मानते हो तो जिनदत्तसूरिने कई स्थान पर गृहस्थों के करने योग्य कार्य किये हैं। क्या जैन शासन में ऐसे व्यक्तियों को युगप्रधान माना जा सकता है ?
(७) अंचलगच्छीय आचार्य मेरुतुंगसूरिने अपने शतपदी ग्रंथ के १४९ पृष्ठ पर जिनदत्तसूरि की नवीन आचरणा के बारे में पच्चीस बातें विस्तार से लिखी हैं। पर मैं उनसे कतिपय बातें पाठकों की जानकारी के लिए यहां उघृत करदेता हुँ । वे लिखते हैं कि जिनदत्तसूरिः
१-श्राविकाने पूजानो निषेध कर्यो । २-लबण ( निकम ) जल, अग्नि में नोंखवू ठेराव्यो।
३-देरासर में जुवान वेश्या नहीं नचावी किन्तु जे नानी के वृद्ध वेश्या होय ते नचाववी एवी देशना करी ।
४-गोत्रदेवी तथा क्षेत्रपालादिकनी पूजाथी सम्यक्त्व भागे नहि एम ठेराव्युं । ___ -अमेज युगप्रधान छीए एम मनाया मांडयुं.
६-वली एवी देशना करवा मांडी के एक साधारण खातानुं बाजोठ (पेटी) राखावू तेने आचार्यको. हुकम 'लइ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com