Book Title: Khartaro ke Hawai Killo ki Diware
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 10
________________ यदि आप अपना पतित आचार को छीपाने के लिये ही शान्त समाज में राग द्वेष फैला रहे हो तो आप का यह खयाल बिलकुल गलत हैं कारण अब जनता और विशेष खरतर लोग इतने अज्ञात नहीं रहे हैं कि आप इस प्रकार फूर कुसम्प फैला कर अपने पतित प्राचार की रक्षा कर सको । यह बात आपकी जानकारी के बहार तो नहीं होगा कि कई लोग खरतर होते हुए भी आप लोगों का मुंह देखने में भो महान् पाप समझते हैं । मेरा खयाल से तो आप इस प्रकार अन्यगच्छीय आचायों की व्यर्था निंदा कर अपना और अपने भक्तों का अहित ही कर रहे है यदि अन्य गच्छवाले आपका बिहिष्कार करदिया तो आपके चंद ग्रामों में मूठीभर हो भक्त रह जायगा । खरतरो ! अब भो समय है, आप अपनी द्वेष भावना को प्रेम में प्रणित कर दो सब गच्छवालों के साथ मिल झूलकर रहो । प्रत्येक गच्छ में प्रभाविक आचार्थ हुए हैं. उन सबके प्रति पूज्यभाव रक्खों । तुम अन्यगच्छीय आचार्यो के लिए पूज्यभाव रखोंगे तो आपके आचार्यों प्रति अन्य गच्छवाले भी पूज्यभाव रक्खेंगे । अतएव मूर्तिपूजक समाज में प्रेम, ऐक्यता और संगठन बढाओं इसमें सब के साथ साथ शासन का हित रहा हुवा हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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