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चाम्पावत फतेहसिंह आपके ही आर्शीवाद से जयपुर के दीवान बने थे। जोधपुर के महाराजा तखतसिंह आपके भक्त थे। रतलाम के सेठ सोभागमल चांदमल बाफणा भी आपके भक्तों में थे।
__कीर्तिरत्नसूरि - ये शंखवालेचा गोत्र के थे और इन्हीं के भाई सेठ मालाशाह ने नाकोड़ा में शान्तिनाथ मन्दिर का निर्माण करवाया। इन्हीं कीर्तिरत्नसूरि ने नाकोड़ा महातीर्थ की स्थापना की। जिनकृपाचन्द्रसूरि के परम भक्तों में सेठ मोतीशाह के वंशज रतनचन्द खीमचन्द, मूलचन्द हीराचन्द, प्रेमचन्द कल्याण, केसरीचन्द कल्याणचन्द ने १९७२ में आपका चातुर्मास लालबाग बम्बई में करवाया था। सूरत के सेठ पानाचन्द भगुभाई, फतेहचन्द प्रेमचन्द, आपके प्रमुख भक्त थे और जिनदत्तसूरि ज्ञान भण्डार की स्थापना आपने ही की थी।
मुनि मोहनलालजी महाराज - संवत् १९४९ में मुर्शिदाबाद निवासी धनपतिसिंह दूगड़ द्वारा शत्रुञ्जय में निर्मापित धनवसही के प्रतिष्ठापक आप ही थे। संवत् १९६१ में कलकत्ता के रायबहादुर बद्रीदास मुकीम, रतलाम के सेठ चांदमलजी पटवा, ग्वालियर के राय बहादुर नथमलजी गोलेछा और फलोधी के फूलचन्दजी झाबक आदि आपकी आज्ञा को स्वीकार करते थे। जिनरत्नसूरि - आपके उपदेश से भुज से वसनजी वागजी ने भद्रेश्वर का संघ निकाला। सेठ रवजी सोजपाल, मेघजी सोजपाल, मूलचन्द हीराचन्द भगत, संघपति चांदमलजी चोपड़ा, जाबरा के प्यारचन्दजी पगारिया, भुज के हेमचन्दभाई आदि आपके मुख्य भक्त थे। मन्त्री/दीवान
बीकानेर नगर के निर्माण में खरतरगच्छीय उपासकों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। राव बीकाजी के मन्त्री वत्सराज थे, जिन्होंने दुर्ग निर्माण और मोहल्लों को मर्यादित कर बसाने में बहुत दुरदर्शिता से काम लिया था। राव लूणकरणजी के मन्त्री कर्मसिंह थे, जिन्होनें नमिनाथ मन्दिर बनवाकर जिनहंससूरिजी से प्रतिष्ठा करवाई थी। राव जयतसीजी के मन्त्री वरसिंह और नगराज थे। राव कल्याणमल्लजी के मन्त्री संग्राहसिंह व कर्मचन्द्र बच्छावत थे तथा राजा रायसिंहजी के मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्र थे।
प्रतिष्ठा लेख संग्रह (द्वितीय खण्ड) लेखाङ्क ३७३ के अनुसार सांडेचा गोत्रीय रायमल के पुत्र जीवराज संघवी जो कि आमेर देशाधिपति के द्वारा प्रदत्त दीवान पद के धारक थे। उनके पुत्र मोहनराम रामगोपाल ने जयपुर में मोहनवाड़ी में जिनकुशलसूरिजी के चरणों की स्थापना की थी। जयपुर के इतिहास में यह पहले दीवान थे जो कि श्वेताम्बर थे। इनके पुत्र मोहनराम के नाम से ही यह मोहल्ला मोहनवाड़ी के नाम से ही जयपुर में प्रसिद्ध है। जयपुर के दूसरे दीवान नथमलजी गोलेछा हुए जिनका कि नथमलजी का कटला जो आज अग्रवाल कॉलेज के नाम से प्रसिद्ध है।
कलकत्ता के राय बहादुर बद्रीदास - खरतरगच्छ के परम भक्त थे। कलकत्ता के वायसराय भी इनके घर आते-जाते थे। सम्मेतशिखर के मुकदमे में श्वेताम्बर समाज की ओर से अग्रगण्य बद्रीदासजी
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