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पदोत्सव हाजीखान डेरावासी बड़हरा धीरुमल्ल ने किया था। जिनोदयसूरि के समय में - १८९७ में गोलेछा माणकचन्द ने बीकानेर में शान्तिनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई थी।
जिनरङ्गसूरि शाखा - अजमेर में संवत् १७०१ में बाफणा गोत्रीय गौरा, नानालाल तथा कसाजी मेहता ने पदोत्सव किया था। उदयपुर के कटारिया मेहता, भागचन्द बच्छावत और मेहता रूपचन्द ने इठ्यासी जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा करवाई थी। भाण्डिया गोत्रीय श्रीमाल राय निहालचन्द आपके प्रमुख भक्त थे। जिनचन्द्रसूरि (१८वीं सदी) के समय में - मालपुरा निवासी शंखवालेचा गोत्रीय शाह पंचायण दास ने शत्रुञ्जय की तीर्थ यात्रा का संघ निकाला था। भाण्डिया गोत्रीय शाह मलूक चन्द ने जोबनेर में चौवीस तीर्थंकरों की प्रतिष्ठा करवाई थी। जिनविमलसूरि (१८वीं सदी) के समय में - श्रीमाल भाण्डिया गोत्रीय वसन्तराय. नारायणदास, भगवतीदास ने इनका पदोत्सव किया था। जिनललितसूरि (१८वीं सदी) बोरबडी निवासी बोथरा गोत्रीय शाह ताराचन्द फतरचन्द ने इनका पदोत्सव किया था। जिनचन्द्रसूरि (१९वीं) के समय में - लखनऊ निवासी नाहटा गोत्रीय राजा वच्छराज, चण्डालिया वसन्तराय श्रीमाल, भाण्डिया हकीम देवीदास, टांक भूपति राय, अजमेर निवासी शंखवालेचा गोत्रीय महमिया रूढ़मल्ल, अनूपचन्द मूलचन्द आदि।सं. १८६९ लूणिया गोत्रीय त्रिलोकचन्द और गिड़िया गोत्रीय राजाराम के संघ के साथ शत्रुञ्जय तीर्थ की यात्रा की थी। दिल्ली में लाहौर निवासी शंखवालेचा गोत्रीय माणकचन्द, भाण्डिया हजारी, लखनऊ के भाण्डिया देवीदास, पहलावत, महानन्द, नौबतराय, महिमवाल सदासुख, जागा गोत्रीय मन्नुलाल आदि आपके भक्त थे। जिनकल्याणसूरि (२०वीं सदी) के समय में - पारसान प्रतापचन्द, कानपुर के संतोषचन्द भण्डारी, जिन्होनें शीशे का मन्दिर बनवाया था आदि। जिनचन्द्रसूरि (२०वीं) के समय में - कलकत्ता के रायबहादुर सेठ बद्रीदास इनके परम भक्त थे। बद्रीदासजी ने कलकत्ता में काँच का मन्दिर बनवाया जो आज 'बद्रीदास टेम्पल' के नाम से विश्व-प्रसिद्ध है।
मण्डोवरा शाखा - जिनमहेन्द्रसूरि के उपदेश से जेसलमेर निवासी बाफणा गोत्रीय बहादरमलसवाईराम-मगनीराम-जोरावरमल-दानमल आदि ने पाली से शत्रुञ्जय महातीर्थ का यात्रा संघ १८९१ में निकाला था। इस संघ में ११ श्रीपूज्य और साधु-साध्वियों की संख्या २१०० थी। इस संघ की सुरक्षा के लिए अंग्रेज, जावरा नवाब, टोंक नवाब, जोधपुर नरेश, कोटा नरेश आदि की ओर से तोप सहित सैन्य भी शामिल था। यही बाफणा जेसलमेर के पटवा कहलाते हैं और जेसलमेर में इन पाँचों भाईयों की पाँचों हवेलियाँ आज भी पटवा हवेली के नाम से जग प्रसिद्ध है। बम्बई निवासी सेठ मोतीशाह नाहटा के द्वारा निर्मापित सेठ मोतीशाह मन्दिर, शत्रुञ्जय की प्रतिष्ठा भी आप ही ने करवाई थी। जेसलमेर के महारावल गजसिंह, और मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह और कोटा नरेश भी इनको बहुत सम्मान देते थे। जिनमुक्तिसूरि के समय में - १९१५ में लखनऊ निवासी नाहटा, भूपहजारीमल गाँधी, छुट्टनलाल, प्रेमचन्द आदि ने आपका पदोत्सव किया था। पोकरण के ठाकुर
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