Book Title: Karmastava
Author(s): Atmanandji Maharaj Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 10
________________ दूसरा कर्मग्रन्थ है।इस में योग्यस्थानों में यन्त्र-नकशे-भी दिये गये हैं। इस के बाद एक परिशिष्ट है जिस में श्वेताम्बरीयदिगम्वरीय कर्मविषयक साहित्य के कुछ समान तथा अस. मान बात उल्लिखित की हुई है। परिशिष्ट के बाद कोश दिया गया है.जिस में मूल दूसरे कर्मग्रंथके शब्द, अकारादि क्रमसे देकर उनकी छाया तथाहिंदीश्रर्थ दिया गया है। अंत में गाथाय हैं, जो मूल मात्र याद करने वालों के लिये या उसे देखने वालों के लिये विशेष उपयोगी हैं। । यदि इस ग्रन्थके अनुवाद में कोई त्रुटि रह गई हो तो वि. शेषदर्शी पाठकों से हम अनुरोध करते हैं कि वे कृपया उस की सूचना दे ताकि दूसरीश्रावृत्ति में संशोधन किया जा सके निवेदक वीरपुत्र.

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