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साथ तीन विभक्ति के प्रयोग से ये अर्थ प्राप्त होते हैं । जैसे-द्रव्य की स्थापना, द्रव्य से (द्वारा) स्थापना, द्रव्य में स्थापना । इनके एकवचन और बहुवचन की विवक्षा से छह भेद प्राप्त होते हैं । पाठकों की सुविधा हेतु यहाँ तालिका प्रस्तुत है ।
द्रव्य की स्थापना-एक संस्तारक का ग्रहण । द्रव्यों की स्थापना-एकाधिक उपकरण का ग्रहण । द्रव्य से (द्वारा) स्थापना-एक आम्बिल के द्रव्य से चातुर्मासी तप । द्रव्यों से (द्वारा) स्थापना-चार आम्बिल के द्रव्य से चातुर्मासी तप । द्रव्य में स्थापना-एक फलक में रहना । द्रव्यों में स्थापना-एकाधिक फलक में रहना । क्षेत्र की स्थापना-एक गाँव में आहारादि हेतु जाना । क्षेत्रों की स्थापना-नजदीक के तीन गाँव में आहारादि हेतु जाना । क्षेत्र से स्थापना नहीं होती । क्षेत्रों से स्थापना-नहीं होती । क्षेत्र में स्थापना–कारणवश अर्ध योजन की मर्यादा में विचरण । क्षेत्रों में स्थापना-कारणवश अर्ध योजन से अधिक योजन की मर्यादा में विचरण । काल की स्थापना-चार महिनों की मर्यादा । काल से स्थापना-आषाढ़ी पूर्णिमा तिथि से चातुर्मास की स्थापना होती है ।
कालों से स्थापना-आषाढ़ी पूर्णिमा से पाँच-पाँच दिन को बढ़ाते चातुर्मास की स्थापना होती है।
काल में स्थापना-वर्षाऋतु में चातुर्मास की स्थापना होती है ।
कालों में स्थापना-आषाढ़ी पूर्णिमा से एक माह और बीस दिन में चातुर्मास की स्थापना होती है।
भाव की स्थापना-चातुर्मास में औदयिक भाव का त्याग होता है ।
भावों की स्थापना-चातुर्मास में क्षायिक एवं क्षायोपशमिक भाव को छोड़कर शेष भाव का त्याग होता है। __ भाव से स्थापना-जिस भाव से निर्जरा हो उस भाव का स्वीकार भावों से स्थापना । भाव में स्थापना चातुर्मास में क्षायोपशमिक भाव में स्थिरता होती है । भावों में स्थापना नहीं होती ।
१. सन्दर्भ-क.नि. ५ ।