Book Title: Kalpniryukti
Author(s): Bhadrabahusuri, Manikyashekharsuri, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 133
________________ कल्पनिर्युक्तिः वाली जिह्वा निकालता । श्रमणों द्वारा पूछने पर कहता, “मैं सातासुख से प्रतिबद्ध जिह्वा - दोष के कारण अल्प ऋद्धि वाला होकर इस नगर में व्यन्तर उत्पन्न हुआ हूँ । तुम्हें प्रतिबोधित करने के लिए यहाँ आया हूँ । मेरे जैसा मत करना ।" १०८ कुछ लोग इस कथा को इस प्रकार भी कहते हैं, जब श्रमण आहार लेते थे तब वह समस्त अलङ्कारों से विभूषित हो दीर्घ आकार वाला हाथ गवाक्ष द्वार से साधुओं के आगे फैलाता। साधुओं द्वारा पूछने पर कहता, "यह मैं आर्यमङ्गु ऋद्धि और जिह्वा - लोभ से अत्यधिक प्रमाद वाला होकर मरणोपरान्त लोभ-दोष से अधर्मी यक्ष हुआ हूँ । इसलिए तुम लोग इस प्रकार लोभ मत करना । " ●●

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