Book Title: Kalpniryukti
Author(s): Bhadrabahusuri, Manikyashekharsuri, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 57
________________ ३२ ६४. सुत्ते जहा णिबद्धं, वग्घारिय भत्त-पाण अग्गणं । णाणट्टी तवस्सी अणहियासि वग्घारिए गहणं ॥११५॥ कल्पनिर्युक्तिः (६३) (प्रा०चू०) पुरिमचरिमाण य तित्थगराणं एस मग्गो चेव । जहा - वासावा सं पज्जोसवेतव्वं, पडउ वा वासं मा वा । मज्झिमगाणं पुण भयणिज्जं । अवि य वद्धमाणतित्थंमि मंगलनिमित्तं जिण - गणधरावलिया? सव्वेसिं च जिणाणं समोसरणाणि परिकहिज्जंति ॥११४॥ (६४) (प्रा०चू०) सुत्ते० गाहा । सुत्ते जहा णिबंधो- 'णो कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वग्घारित- वुट्टिकायंसि गाथावतिकुलं भत्ता वा पाणाए वा पविसित्तए वा निक्खमित्तए वा ।” वग्घारियं नाम जं भिण्णवासं पडति, वासकप्पं भेत्तूण अंतो का (६३) (अव०) पूर्वचरमयोरर्हतोः पर्युषणाकल्पः स्यात् । वर्द्धमानतीर्थे मङ्गलमिति मङ्गलार्थं ततो जिनकथा परिकथिताः स्थविरावली वक्ष्ये ॥११४॥ (६४) (अव० ) सूत्रे यथा निबद्धं । णो कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीण वा वग्घारियवुट्ठि वग्घारियं नाम यदभिन्नं वर्षं पतति कल्पं भित्त्वा अन्तः कायम् आर्द्रयति इति वघारीवृष्टिरुच्यते । तत्र १. गणहर [राइथेरा] वलिया । २. वासावासं पज्जोसवियस्स णो कप्पइ पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स कणगफुसियमित्तमवि वुट्ठिकार्यसि निवयमाणंसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ कल्पसूत्रं (२५३) वासावासं पज्जोसवियस्स पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स णो कप्पइ अगिहंसि पिंडवायं पडिगाहित्ता पज्जोसवित्तए, पज्जोसवेमाणस्स सहसा वुट्टिकाए निवइज्जा देसं भुच्चा देसमादाय से पाणिणा पाणि परिपिहित्ता उरंसि वा णं निलिज्जिज्जा, कक्खंसि वा णं समाहडिज्जा, अहाछन्नाणि वा लेणाणि वा उवागच्छिज्जा, रुक्खमूलाणि वा उवागच्छिज्जा, जहा से पाणिसि दए वा दगरए वा दगफुसिआ वा नो परिआवज्जइ ॥ कल्पसूत्र (२५४) वासावासं पज्जोसवियस्स पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स जं किंचि कणगफुसियमित्तं पि निवड णो से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ कल्पसूत्र (२५५) वासावासं पज्जोसवियस्स पडिग्गहधारिस्स भिक्खुस्स णो कप्पर वग्घारियवुट्ठिकार्यसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, कप्पइ से अप्पवुट्ठिकार्यसि संतरुत्तरंसि गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ कल्पसूत्र (२५६) वासावासं पज्जोसविअस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुट्टिकाए निवइज्जा कप्पर से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए । कल्पसूत्र ( २५८)

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