Book Title: Kalpniryukti
Author(s): Bhadrabahusuri, Manikyashekharsuri, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 63
________________ कल्पनियुक्तिः वासाखेत्तालंभे अद्धाणादीसु पत्तमहिगा तु । साहगवाघाएण व अप्पडिक्कमितुं जइ वयंति ॥६०॥ (देही) पडिमापडिवन्नाणं एगाहं पंच होतऽहालंदे । जिणसुद्धाणं मासो निक्कारणओ य थेराणं ॥६१॥ (विद्या) ऊणाइरित्त मासा एवं थेराण अट्ठ णायव्वा । इयरे अट्ठ विहरिउं णियमा चत्तारि अच्छन्ति ॥६२॥ (देही) आसाढपुण्णिमाए वासावासं तु होति गंतव्वं । मग्गसिरबहुलदसमीउ जाव एक्कम्मि खेत्तम्मि ॥६३॥ (विद्या) वर्षाक्षेत्रालब्धौ अध्वादिषु प्राप्तमधिकाः तु । साधकव्याघातेन वा, अप्रतिक्रम्य यदि व्रजन्ति ॥६०॥ प्रतिमाप्रतिपन्नानां एकाहः पञ्चाहानि यथालन्दे । जिनशुद्धानां मासः निष्कारणिकश्च स्थविराणाम् ॥६१॥ ऊनातिरिक्तमासा एवं स्थविराणामष्टौ ज्ञातव्याः । इतरे अष्टौ विहृत्य नियमेन चत्वारि आसते ॥६२॥ आषाढपूर्णिमायां वर्षावासे तु भवति गन्तव्यम् । मार्गशीर्षबहुलदशम्याः यावद् एकस्मिन् क्षेत्रे ॥६३॥ चातुर्मास क्षेत्र प्राप्त न होने पर, मार्ग आदि में ही अधिक दिन प्राप्त (व्यतीत) होने पर एवं सिद्धि में बाधक (नक्षत्र) होने से यदि प्रतिक्रमण न करने का निर्देश हो तो आठ माह से अधिक विहार होता है ॥६०॥ प्रतिमाधारी मुनि एक अहोरात्रि, यथालन्दिक मुनि पाँच अहोरात्रि, जिनकल्पी और स्थविरकल्पी साधु एक मास निष्कारण (सामान्य स्थिति में) एक क्षेत्र मे न रहें अर्थात् कारणवश उक्त अवधि घट बढ़ सकती है ॥६१॥ उक्तरीति से स्थविरकल्पियों का आठ माह से कम और अधिक विहार जानना चाहिए । इन (स्थविरकल्पियों) से भिन्न (प्रतिमाप्रतिपन्न, यथालन्दिक) आठ महीने विहार कर नियमपूर्वक चार महीने वर्षावास करते हैं ॥६२॥ आषाढ़ पूर्णिमा तक वर्षावास के लिए चला जाना चाहिए और मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि तक एक क्षेत्र में निवास करना चाहिए ॥६३।।

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