________________
कल्पनियुक्तिः
अप्पिणह तं बइल्लं दुरूतग्ग( तग्गो) ! तस्स कुंभयारस्स । मा भे डहीहि गामं अन्नाणि वि सत्त वासाणि ॥९२॥ (देही) चंपा कुमारनंदी पंचऽच्छर थेरनयण दुमऽवलए । विह पासणया सावग इंगिणि उववाय णंदिसरे ॥९३॥ (कान्ति) बोहण पडिमा उदयण पभाव उप्पाय देवदत्ताते । ( देवजत्ताते) मरणुववाए तावस णयणं तह भीसणा समणा ॥९४॥ (कान्ति) गंधारगिरी देवय पडिमा गुलिया गिलाण पडियरणं । पज्जोयहरण पुक्खर रण गहणा मेऽज्ज ओसवणा ॥१५॥ (महामाया)
अर्पयत तं बलीव, दुरूत्तक ! तस्मै कुम्भकाराय । मा भोः ! दह ग्रामम्, अन्यान्यपि सप्तवर्षाणि ॥९२॥ चम्पा कुमारनन्दी, पञ्चाप्सरःस्थविरनयनद्रुमवलयाः । विहगदर्शनके श्रावकः, इङ्गिनी उपपात: नन्दीश्वरे ॥१३॥ बोधनं प्रतिमा उदयनः प्रभावः उत्पातो देवदत्तायः । मरणोपपातौ तापस: नयनं तथा भीषणाः श्रमणाः ॥१४॥ गन्धारगिरिः दैवतं प्रतिमा गुलिका ग्लानप्रतिचरणम् । प्रद्योतहरणं पुष्कररणगहणानि मेऽद्य उत्सवः ॥१५॥
ने) उद्घोषक से घोषणा करवायी, "हे द्विरुक्तक ! उस कुम्भकार को बैल दे दो।" ("हे कुम्भकार !) सात वर्ष तक हमारे ग्राम (के खलिहान) को जलाने के बाद पुनः मत जलाना !" ॥९१-९२।।
चम्पा (नगरी में स्वर्णकार) कुमारनन्दी, पञ्चशैलद्वीप पर स्थविर द्वारा ले जाना, वटवृक्ष पर बसेरा, भारण्ड पक्षी के पैरों से स्वयं को बाँधकर पञ्चशैल पहुँचना, श्रावक नागिल (द्वारा मना करना), इङ्गिनीमरण (द्वारा शरीर-त्याग) (पञ्चशैल पर विद्युन्माली यक्ष रूप में) उत्पन्न, (पटह गले में बाँधकर बजाता हुआ) नन्दीश्वर गमन, (श्रावक नागिल द्वारा) बोध पाकर महावीर प्रतिमा निर्मित कराकर उपासना, राजा उदायन (के पास देवाधिदेव की प्रतिमा कराने का निवेदन) रानी प्रभावती के प्रहार से दासी देवदत्ता का वध, (प्रायश्चित्तवश) मरण के पश्चात् देवलोक में उत्पन्न, तपस्वी वेश में (राजा उदायन को उद्बोधन), अलौकिक फल के बहाने (जिनवर साधुओं के पास ले जाना), जैन श्रमण द्वारा उद्बोधन, गान्धार (जनपद से मुमुक्षु श्रावक का वैताढ्यगिरि (गमन एवं उपवास), देवता द्वारा (सन्तुष्ट हो) स्वर्ण प्रतिमा और गुलिकायें देना, (महावीर प्रतिमा की वन्दना हेतु आना), ग्लान-अस्वस्थ हो जाने पर (दासी द्वारा) परिचर्या (से प्रसन्न श्रावक द्वारा प्रदत्त गुटिका से दासी का रूपवती बनना व राजा प्रद्योत की