Book Title: Kalpniryukti
Author(s): Bhadrabahusuri, Manikyashekharsuri, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 122
________________ परिशिष्ट-७ आवश्यकचूर्णिप में भी ये कथायें प्राप्त होती हैं । इन चूर्णियों में प्राप्त विवरणों के आधार पर ही इन कथाओं का स्वरूप प्रस्तुत किया जा रहा है१. अधिकरण सम्बन्धी द्विरुक्तक दृष्टान्त एगबइल्ला भंडी पासह तुब्भे उज्झ खलहाणे । हरणे झामणजत्ता, भाणगमल्लेण घोसणया ॥११॥ अप्पिणह तं बइल्लं दुरुतग्ग ! तस्स कुंभयारस्स । मा भे डहीहि गामं अन्नाणि वि सत्त वासाणि ॥१२॥ - दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति गाथा कथा सारांश एक कुम्हार मिट्टी के बर्तनों से भरी बैलगाड़ी लेकर द्विरुक्तक (द्वि-अर्थी भाषा बोलने वाले) नाम के समीपवर्ती गाँव में पहुँचा । कुम्हार का एक बैल चुराने के अभिप्राय से द्विरुक्तकों ने कहा, 'हे ! हे ! लोगो ! आश्चर्य देखो ! एक बैल वाली गाड़ी है।' इस पर कुम्हार बोला, 'हे लोगों ! देखो ! इस गाँव का खलिहान जल रहा है' और उसने गाड़ी गाँव के बीच ले जाकर खड़ी कर दी । मौका देखकर गाँव वालों ने उसका एक बैल चुरा लिया । बर्तन बिक जाने के बाद आने पर उसने गाँव वालों से बैल वापस देने की बार-बार याचना की। गाँव वालों ने कहा, 'तुम एक ही बैल के साथ आये हो । बैल वापस न मिलने से क्रुद्ध कुम्हार शरदकाल में गाँव वालों के धान्य से भरे खलिहान को लगातार सात वर्ष तक आग लगाता रहा । आठवें वर्ष गाँव वालो ने इकट्ठे होकर घोषणा करवायी कि, 'जिसके प्रति भी हमने अपराध किया है, वह हमें क्षमा करे, परिवार सहित हमारा नाश न करें ।' तब कुम्हार बोला, 'बैल मुझे वापस दो ।' बैल मिल जाने पर उसने गाँव वालों को क्षमा कर दिया । यदि उन असंयत अज्ञानी लोगों द्वारा स्वकृत अपराध हेतु क्षमा माँगी गयी और उस असंयमी कुम्हार ने क्षमा भी कर दिया, तो पुनः संयत ज्ञानियों द्वारा भी अपने प्रति किये गये अपराध के लिए पर्युषण पर्व में अवश्य क्षमा कर देनी चाहिए। ऐसा करने से संयम आराधना होती है। २. चम्पाकुमार नन्दी या अनङ्गसेन दृष्टान्त चंपाकुमारनंदी पंचऽच्छर थेरनयण दुमऽवलए । विह पासणया सावग इंगिणि उववाय णंदिसरे ॥१३॥ ६. आवश्यकचूर्णि, दो खण्ड, ऋषभदेव केसरीमल संस्था, रतलाम १९२८-२९ । ७. द०नि०, लाखाबावल, पृ० ४८५ ।

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