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परिशिष्ट - १ छाया एवं अनुवाद'
द० नि० की गाथाओं में प्रयुक्त छन्दों का विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है - द० नि०, प्राकृत के मात्रिक छन्द 'गाथा' में निबद्ध है । 'गाथा सामान्य' के रूप में जानी जाने वाली यह संस्कृत छन्द आर्या के समान है । 'छन्दोऽनुशासन' की वृत्ति में उल्लिखित भी है- 'आव संस्कृतेतरभाषासु गाथासज्ञेति गाथालक्षणानि' अर्थात् संस्कृत का आर्या छन्द ही दूसरी भाषाओं में गाथा के रूप में जाना जाता है। दोनों - गाथा सामान्य और आर्या में कुल मिलाकर ५७ मात्रायें होती हैं। गाथा में चरणों में मात्रायें क्रमश: इस प्रकार हैं - १२, १८, १२ और १५ । अर्थात् पूर्वार्द्ध के दोनों चरणों में मात्राओं का योग ३० और उत्तरार्द्ध के दोनों चरणों का योग २७ I
'आर्या' और 'गाथा सामान्य' में अन्तर यह है कि आर्या में अनिवार्य रूप से ५७ मात्रायें ही होती हैं, इसमें कोई अपवाद नहीं होता, जबकि गाथा में ५७ से अधिक - कम मात्रा भी हो सकती है, जैसे ५४ मात्राओं की गाहू, ६० मात्राओं की उद्गाथा और ६२ मात्राओं की गाहिनी भी पायी जाती है। मात्रावृत्तों की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके चरणों में लघु या गुरु वर्ण का क्रम और उनकी संख्या नियत नहीं है । प्रत्येक गाथा में गुरु और लघु की संख्या न्यूनाधिक होने के कारण ‘गाथा सामान्य' के बहुत से उपभेद हो जाते हैं ।
द० नि० में ‘गाथा सामान्य' के प्रयोग का बाहुल्य है । कुछ गाथायें गाहू, उद्गाथा और गाहिनी में भी निबद्ध हैं । सामान्य लक्षण वाली गाथाओं (५७ मात्रा) में बुद्धि, लज्जा, विद्या, क्षमा, देही, गौरी, धात्री, चूर्णा, छाया, कान्ति और महामाया का प्रयोग हुआ है ।
गाथा सामान्य
उपभेदों की दृष्टि से अलग-अलग गाथावृत्तों में निबद्ध श्लोकों की संख्या इसप्रकार है-बुद्धि- १, लज्जा - ४, विद्या - ११, क्षमा-९, देही - २८, गौरी - २२, धात्री - २३, चूर्णा - १५, छाया-८, कान्ति- ३, महामाया - ३, उद्गाथा - ९ और अन्य - ४ ।
यह बताना आवश्यक है कि सभी गाथाओं में छन्द लक्षण घटित नहीं होते हैं ।
१. सन्दर्भः दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्तिः एक अध्ययन । सं० डॉ० अशोक कुमार सिंह ।