Book Title: Kalpniryukti
Author(s): Bhadrabahusuri, Manikyashekharsuri, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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कल्पनियुक्तिः
पव्वय० । जो तद्दिवसं चेव पडिक्कमण-वेलाए उवसमइ जाव पक्खियं ताव उदगराइसमाणो । चाउम्मासिए जो उवसमइ वालुगा-राति-समाणो । सरते जधा पुढवीए फुडिता दालीतो वासेणं संमिलंति एवं जाव देवसिय-पक्खिय-चाउम्मासिएसु ण उवसमति संवच्छरिए उवसमेति तस्स पुढवि-राय-समाणो कोधो । जो पज्जोसमणाए वि ण उवसमति तस्स पव्वय-राई समाणो कोधो। जधा पव्वतराई न संमिलति तधा सो वि । एवं सेसा वि कसाया परूवेतव्वा ॥१००-१०१-१०२-१०३॥
आउ व उवायाणं तेण कसाया जओ कसस्साया । जीवपरिणामरूवा जेण उ नामाइनियमोऽयं ॥२९७९।। नामं ठवणा दविए उप्पत्ती पच्चए य आएसे । रस-भाव-कसाए वि य परूवणा तेसिमा होइ ॥२९८०॥ दुविहो दव्वकसाओ कम्मदव्वे य नो व कम्मम्मि । कम्मद्दव्वकसाओ चउव्विहा पोग्गलाणुइया ॥२९८१।। सज्जकसायाइओ नोकम्मदव्वओ कसाओऽयं ।
खेत्ताइ समुप्पत्ती जत्तो प्पभवो कसायाणं ॥२९८२।। होइ कसायाणं बंधकारणं जं स पच्चयकसाओ । सद्दाइउ त्ति केई न समुप्पत्तीए भिन्नो सो ॥२९८३।। आएसओ कसाओ कइयवकयभिउडिभंगुरागारो । केई चित्ताइगओ ठवणाणत्थंतरो सोऽयं ॥२९८४।। रसओ रसो कसाओ कसायकम्मोदओ य भावम्मि । सो कोहाइ चउद्धा नामाइ चउविहेक्के को ।।२९८५।। भावं सद्दाइनया अट्ठविहमसुद्धनेगमाईया । णाएसुप्पत्तीओ सेसा जं पच्चयविगप्पा ॥२९८६।। दुविहो य दव्वकोहो कम्मदव्वे य नोयकम्मम्मि । कम्मद्दव्वे कोहो तज्जोग्गा पोग्गला णुइया ॥२९८७।। नोकम्मदव्वकोवो णेओ चम्मारकोहनीलादि । जं कोहवेयणिज्जं समुइण्णं भावकोहो सो ॥२९८८।। माणादओ वि एवं नामाई चउव्विहा जहाजोग्गं । नेया पिहण्णिहा वा सव्वेऽणताणुबन्धाई ॥२९८९।। जल-रेणु-भूमि-पव्वयराईसरिसो चउव्विहो कोहो । तिणिसलया-कट्ठ-ट्ठियसेलत्थंभोवमो माणो ॥२९९०।।

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